मूल श्लोक:
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥6॥
शब्दार्थ:
- युधामन्युः — युधामन्यु (एक पराक्रमी राजकुमार, युद्ध में निपुण)
- विक्रान्तः — अत्यंत पराक्रमी, साहसी
- उत्तमौजाः — उत्तमौजा (एक अन्य शक्तिशाली योद्धा, पाञ्चाल राजकुमार)
- वीर्यवान् — बलवान, वीरता से युक्त
- सौभद्रः — अभिमन्यु (सुभद्रा का पुत्र, अर्जुन का बेटा)
- द्रौपदेयाः — द्रौपदी के पाँचों पुत्र (प्रत each एक पांडव से उत्पन्न)
- सर्वे एव — सभी निस्संदेह
- महारथाः — अत्यंत शक्तिशाली रथी, जो अकेले दस हजार रथियों से लड़ने में सक्षम हो
इनकी सेना में पराक्रमी युधामन्यु, शूरवीर, उत्तमौजा, सुभद्रा और द्रौपदी के पुत्र भी हैं जो सभी निश्चय ही महाशक्तिशाली योद्धा हैं।

भावार्थ:
दुर्योधन आगे पांडवों की सेना में मौजूद और भी पराक्रमी योद्धाओं का उल्लेख करते हुए कहता है — “यहाँ युधामन्यु और उत्तमौजा जैसे महान योद्धा भी हैं, बलशाली अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्र भी हैं। ये सभी महारथी हैं, अत्यंत कुशल और शक्तिशाली योद्धा।”
विस्तृत भावार्थ:
1. युधामन्यु — रक्षक और आक्रामक शक्ति का प्रतीक:
युधामन्यु एक महान योद्धा थे, जिन्हें विशेष रूप से अर्जुन की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया था। उनका नाम ही “युद्ध” और “मन्यु” (क्रोध, जोश) से बना है, यानी जो युद्ध के समय प्रचंड जोश और साहस से लड़े। वे रक्षक होते हुए भी आक्रामक रणनीति अपनाते थे।
2. उत्तमौजा — समर्पण और पराक्रम का प्रतीक:
उत्तमौजा भी पाञ्चालों के सेनापति थे। उनका कार्य था अर्जुन की रक्षा करना। उनके नाम में ही ‘उत्तम’ (श्रेष्ठ) और ‘उज’ (बल/तेज) का समावेश है — जो श्रेष्ठ बल व ऊर्जा का धनी हो। वे युद्ध में शौर्य और संयम के प्रतीक थे।
3. सौभद्र — अभिमन्यु, युवा परंतु महान:
अभिमन्यु, अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र, कम उम्र में भी महारथी की उपाधि प्राप्त करने वाला वीर था। उसने चक्रव्यूह जैसे दुर्गम युद्धतंत्र में घुसकर अद्भुत वीरता दिखाई। वह यौवन की ऊर्जा और बलिदान की भावना का जीवंत उदाहरण है।
4. द्रौपदेय — भविष्य की नींव:
द्रौपदी के पाँच पुत्र — प्रतिविंध्य (युधिष्ठिर का पुत्र), सुतसोम (भीम का), श्रुतकर्मा (अर्जुन का), शतानीक (नकुल का) और श्रुतसेन (सहदेव का) — युवा होते हुए भी युद्ध के लिए समर्पित थे। ये पांचों वीर भावी पीढ़ी के योद्धाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो धर्म की रक्षा के लिए तैयार हैं।
5. महारथी — मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक क्षमता का मानक:
“महारथी” शब्द केवल बल नहीं दर्शाता, बल्कि यह उस योद्धा को इंगित करता है जो अकेले 10,000 योद्धाओं से युद्ध करने की क्षमता रखता हो — शारीरिक ताकत, रणनीति, मानसिक संतुलन और धर्मनिष्ठा के समन्वय से।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
शक्ति का उत्तराधिकार:
इस श्लोक में तीन पीढ़ियाँ एक साथ दिखाई देती हैं —
- युधामन्यु और उत्तमौजा (वयस्क सेनापति)
- अभिमन्यु (युवा वीर)
- द्रौपदेय (बालक/किशोर योद्धा)
यह एक गहरी बात कहता है — धर्म की रक्षा केवल एक पीढ़ी का कार्य नहीं है। यह उत्तराधिकार से चलने वाला यज्ञ है जिसमें हर अवस्था का योगदान अनिवार्य है।
धर्मयुद्ध की तैयारी संपूर्ण होनी चाहिए:
यह श्लोक दर्शाता है कि पांडव पक्ष केवल भावुक समर्थन नहीं, बल्कि संगठित, रणनीतिक और पूर्ण युद्ध-शक्ति के साथ खड़ा है। अनुभव, ऊर्जा, समर्पण — सबका समन्वय है।
दुर्योधन की मानसिकता:
दुर्योधन इन योद्धाओं का नाम ले-लेकर गुरु द्रोणाचार्य को यह दिखा रहा है कि पांडव पक्ष में कितनी भयंकर शक्ति है — पर इसका उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं है; यह एक प्रकार का भावनात्मक दबाव है ताकि द्रोणाचार्य अधिक गंभीर होकर युद्ध में उतरें।
आध्यात्मिक अर्थ:
- युधामन्यु = कर्म के प्रति पूर्ण उत्साह
- उत्तमौजा = शक्ति का विवेकपूर्ण उपयोग
- अभिमन्यु = अदम्य साहस, भले ही ज्ञान अधूरा हो
- द्रौपदेय = संस्कारों में जन्मी अगली पीढ़ी की आशा
- महारथी = आत्मा जो आत्मबल, ज्ञान और तप से सुसज्जित हो
निष्कर्ष:
यह श्लोक केवल योद्धाओं की गिनती नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि धर्म की रक्षा में केवल बुजुर्ग, अनुभवी या राजा ही नहीं, बल्कि युवा, नवशक्ति और भावी पीढ़ी भी अपनी भूमिका निभाती है। जब उद्देश्य धर्म की रक्षा हो, तब हर युग, हर आयु, हर क्षमता का योद्धा एक साथ खड़ा होता है।
आपसे प्रश्न:
जब आपके सामने कोई धर्मसंकट आता है,
क्या आप अपने भीतर के अभिमन्यु को जगाते हैं, या अनुभव की कमी से पीछे हट जाते हैं?
आपके जीवन में कौन से “द्रौपदेय” हैं — यानी वो नई ऊर्जा, नए विचार जो भविष्य की दिशा तय करेंगे?
क्या आप उन्हें पहचानते हैं, प्रोत्साहित करते हैं?