मूल श्लोक:
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः॥15॥
शब्दार्थ:
- पाञ्चजन्यम् — श्रीकृष्ण का शंख, पाञ्चजन्य नामक
- हृषीकेशः — श्रीकृष्ण (इंद्रियों के स्वामी)
- देवदत्तम् — अर्जुन का शंख, देवताओं द्वारा प्रदत्त
- धनञ्जयः — अर्जुन (धन को जीतने वाला)
- पौण्ड्रं — भीम का विशाल शंख
- महाशङ्खम् — महान शंख
- भीमकर्मा — भयानक कर्म करने वाला (शत्रुओं के लिए भयावह), पराक्रमी
- वृकोदरः — भीम (भेड़िए के समान पेट वाला)
हृषीकेश भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अति दुष्कर कार्य करने वाले भीम ने पौण्डू नामक भीषण शंख बजाया।

भावार्थ:
श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त और भीम ने विशाल पौण्ड्र शंख बजाया। यह ध्वनि संकल्प की, धर्म की और युद्ध प्रारंभ की घोषणा थी।
विस्तृत भावार्थ:
1. शंखों के नाम और उनका प्रतीकात्मक अर्थ:
- पाञ्चजन्य (कृष्ण का शंख):
यह शंख पाञ्चजन नामक असुर को मारकर समुद्र से प्राप्त किया गया था। इसका अर्थ है — अधर्म पर विजय।
हृषीकेश के हाथ में यह शंख इंद्रिय-नियंत्रण और आत्मविजय का प्रतीक है। - देवदत्त (अर्जुन का शंख):
देवताओं द्वारा प्रदत्त यह शंख शुद्धता, दिव्यता और विजय का प्रतीक है।
धनञ्जय अर्जुन जब इसे बजाते हैं, तो यह धर्म के पक्ष में विजयी संकल्प को दर्शाता है। - पौण्ड्र (भीम का शंख):
यह विशाल शंख उसकी शक्ति, क्रोध और भयंकरता का प्रतीक है।
भीमकर्मा वृकोदर इसे बजाकर शत्रुओं में भय और पांडव पक्ष में उत्साह भरते हैं।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
शंखनाद — चेतना का आह्वान:
तीनों शंख अलग-अलग स्वभावों के प्रतिनिधि हैं —
- श्रीकृष्ण का शंख — नियंत्रित चेतना,
- अर्जुन का शंख — धर्मयुक्त संकल्प,
- भीम का शंख — शक्ति और प्रतिशोध।
तीनों मिलकर बताते हैं कि धर्मयुद्ध के लिए शुद्ध विचार, विवेक और शक्ति तीनों आवश्यक हैं।
नामों में छुपी आत्म-संख्या:
- हृषीकेश: ईश्वर जो इंद्रियों को संचालित करता है — आध्यात्मिक नेतृत्व
- धनञ्जय: जो कर्म से विजय प्राप्त करता है — कर्तव्यशील मानव
- वृकोदर: जिसकी भूख केवल सामान्य नहीं, न्याय के लिए है — अंतर्द्वंद्व और बल का मेल
आध्यात्मिक अर्थ:
पात्र | अर्थ |
---|---|
हृषीकेश | ईश्वर, चेतना का मार्गदर्शक |
धनञ्जय | साधक आत्मा जो सत्य की खोज में तत्पर है |
वृकोदर | आंतरिक शक्ति, जो अधर्म को नष्ट करने को तैयार है |
तीनों शंख | मन, बुद्धि और बल — तीनों का जागरण |
यह श्लोक बताता है कि जब मनुष्य की आत्मा, उसका विवेक और उसकी शक्ति — सभी एक साथ धर्म के पक्ष में खड़े होते हैं, तभी कोई कार्य वास्तव में दिव्य बनता है।
निष्कर्ष:
यह दृश्य युद्ध की शुरुआत से पहले की आध्यात्मिक तैयारी को दर्शाता है। केवल अस्त्र-शस्त्र नहीं, विचार और भावनाएं भी सज्ज हो रही हैं। जब श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम अपने-अपने शंख बजाते हैं — तब यह केवल ध्वनि नहीं, बल्कि न्याय, संकल्प और शक्ति का संयुक्त उद्घोष होता है।
आपसे प्रश्न:
आपके जीवन में कौन-सा शंख प्रथम बजता है — चेतना, कर्तव्य, या शक्ति?
क्या आपने कभी भीतर से संकल्पित होकर कोई युद्ध लड़ा है — जहाँ तीनों शक्तियाँ एक साथ सक्रिय थीं?
क्या आपके अंदर कोई “वृकोदर” है — जो अधर्म को देखकर शांत नहीं रह सकता?