Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 2, Sloke 12

English

श्लोक – 12

श्रीभगवानुवाच –
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥

शब्दार्थ:

  • — नहीं
  • त्वा एव — निश्चय ही
  • अहम् — मैं
  • जातु — कभी भी
  • नासम् — नहीं था (अस्तित्व में नहीं था)
  • — नहीं
  • त्वम् — तुम
  • — नहीं
  • इमे — ये
  • जनाधिपाः — राजा लोग (कौरव, पाण्डव आदि)
  • न चैव — और नहीं
  • न भविष्यामः — हम नहीं होंगे
  • सर्वे वयम् — हम सब
  • अतः परम् — इसके बाद (भविष्य में भी)

 ऐसा कोई समय नहीं था कि जब मैं नहीं था या तुम नहीं थे और ये सभी राजा न रहे हों और ऐसा भी नहीं है कि भविष्य में हम सब नहीं रहेंगे।

विस्तृत व्याख्या:

“न त्व एव अहं जातु नासम्” – मैं सदा रहा हूँ:

  • श्रीकृष्ण यहाँ आत्मा की नित्यता को स्पष्ट करते हैं।
  • वे स्वयं को ईश्वरस्वरूप बताते हैं,
    जो न केवल वर्तमान में है, बल्कि अतीत और भविष्य में भी सदा रहा है।

“न त्वम्” – तुम भी सदा रहे हो:

  • यह आत्मा की व्यष्टि (व्यक्तिगत) स्थिति को दर्शाता है।
  • अर्जुन के माध्यम से हम सब को यह शिक्षा मिलती है कि हम कभी नहीं मिटे हैं,
    हम शरीर नहीं, आत्मा हैं — अविनाशी, सनातन आत्मा

“न चैव न भविष्यामः” – आगे भी रहेंगे:

  • भविष्य में भी आत्मा का अस्तित्व रहेगा —
    आत्मा न उत्पन्न होती है, न मरती है —
    यह अजन्मा और अमर है।

दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

1. आत्मा अजर-अमर है:

  • इस श्लोक का मूल भाव यह है कि
    आत्मा नित्य (eternal) है।
    जन्म और मृत्यु केवल शरीर के हैं, आत्मा के नहीं।

2. व्यक्तित्व की continuity:

  • श्रीकृष्ण यह नहीं कह रहे कि हम सब एक ही हैं,
    बल्कि यह कह रहे हैं कि हम सबका अस्तित्व सदा से है और सदा रहेगा।
  • इससे पुनर्जन्म और कर्मफल का सिद्धांत सुदृढ़ होता है।

3. शोक का कोई कारण नहीं:

  • यदि हम सदा से हैं और सदा रहेंगे,
    तो मृत्यु के लिए शोक करना मूर्खता है।

प्रतीकात्मक दृष्टिकोण:

तत्त्वप्रतीकात्मक अर्थ
अहम्, त्वम्, जनाधिपाःसमस्त आत्माएँ – परमात्मा एवं जीवात्मा सभी
नासम् / भविष्यामःआत्मा का नित्य अस्तित्व – काल से परे
अतः परम्समय की सीमा के परे, शाश्वत काल (Eternal Time)

जीवन के लिए शिक्षाएँ:

  1. मैं शरीर नहीं हूँ, आत्मा हूँ।
    जो न उत्पन्न होती है, न मरती है — इसका बोध शांति लाता है।
  2. मृत्यु एक बदलाव है, अंत नहीं।
    जैसे वस्त्र बदलते हैं, वैसे आत्मा शरीर बदलती है।
  3. हमारी चेतना कालातीत है।
    हम अनादि हैं, यह समझकर मोह और भय समाप्त हो जाते हैं।
  4. हर आत्मा का अस्तित्व सदा से है और सदा रहेगा।
    यह विचार हमें सभी के प्रति समान दृष्टि देता है।

चिंतन प्रश्न:

क्या मैं अपने को शरीर मानकर सीमित समझ रहा हूँ?
क्या मुझे आत्मा की नित्यता का अनुभव है?
क्या मैं दूसरों को भी अमर आत्मा के रूप में देख पा रहा हूँ?
क्या मृत्यु का विचार मुझे डराता है या मुक्त करता है?

निष्कर्ष:

यह श्लोक भगवद्गीता का अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व उद्घाटित करता है —
“हम सब सदा से हैं और सदा रहेंगे।”
यह आत्मा की नित्यता, कर्म, पुनर्जन्म और आध्यात्मिक जीवन के दर्शन की आधारशिला है।
यह ज्ञान शोक, भय और मोह को जड़ से काट देता है।

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