Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 2, Sloke 13

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मूल श्लोक – 13

श्रीभगवानुवाच –
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥

शब्दार्थ:

  • देहिनः — देह में स्थित आत्मा का
  • अस्मिन् — इस (शरीर) में
  • यथा — जैसे
  • देहे — शरीर में
  • कौमारम् — बचपन
  • यौवनम् — युवावस्था
  • जरा — वृद्धावस्था
  • तथा — वैसे ही
  • देहान्तरप्राप्तिः — दूसरा शरीर प्राप्त होना (पुनर्जन्म)
  • धीः — धैर्यवान, ज्ञानी पुरुष
  • न मुह्यति — मोहित नहीं होता, भ्रमित नहीं होता

जैसे देहधारी आत्मा इस शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था और वृद्धावस्था की ओर निरन्तर अग्रसर होती है, वैसे ही मृत्यु के समय आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती है। बुद्धिमान मनुष्य ऐसे परिवर्तन से मोहित नहीं होते।

विस्तृत भावार्थ:

1. देह का परिवर्तन – एक स्वाभाविक प्रक्रिया:

  • भगवान श्रीकृष्ण यहाँ देह के स्वाभाविक बदलाव को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं।
  • जैसे एक ही जीवन में हम बचपन → युवावस्था → वृद्धावस्था से गुजरते हैं,
    वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा एक देह से दूसरी देह में प्रवेश करती है।

2. आत्मा का निरंतर अस्तित्व:

  • आत्मा कभी बचपन या बुढ़ापे में नहीं जाती —
    यह केवल देह के अवस्थाओं में होता है।
    आत्मा तो एक साक्षी रूप में सब देखती है, अनुभव करती है।

3. पुनर्जन्म की पुष्टि:

  • “देहान्तरप्राप्तिः” शब्द पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्पष्ट करता है।
  • मृत्यु कोई अंत नहीं है —
    आत्मा एक देह त्यागकर अन्य उपयुक्त देह में प्रवेश करती है।

4. ‘धीः’ – ज्ञानी व्यक्ति:

  • जो व्यक्ति आत्मा के इस नित्य और परिवर्तनशील देह-यात्रा को समझता है,
    वह मृत्यु और शरीर-परिवर्तन को देखकर मोहग्रस्त या विचलित नहीं होता।

प्रतीकात्मक दृष्टिकोण:

तत्त्वप्रतीकात्मक अर्थ
देहिनःआत्मा — जो देह में स्थित है
कौमारं, यौवनं, जराजीवन के पड़ाव — अस्थायी अवस्थाएँ
देहान्तरप्राप्तिःपुनर्जन्म — आत्मा का अगले शरीर में प्रवेश
धीःज्ञानी, विवेकी, आत्मज्ञानी व्यक्ति
न मुह्यतिमोह, शोक, भय आदि से मुक्त व्यक्ति

दार्शनिक और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टियाँ:

1. जीवन = परिवर्तन, आत्मा = शाश्वत:

  • यह श्लोक हमें बताता है कि
    जीवन में परिवर्तन स्थायी है, लेकिन
    जो ‘देखने वाला’ है — वह स्थायी, अचल है।

2. मृत्यु जीवन का अंत नहीं, क्रम है:

  • मृत्यु, शरीर का परिवर्तन है —
    जैसे पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करते हैं।

3. मोह और शोक का अंत:

  • यदि हम आत्मा को जान लें —
    तो शरीर के बदलाव या मृत्यु से न शोक होगा, न भय।

जीवन के लिए शिक्षाएँ:

  1. शरीर बदलते हैं, आत्मा नहीं।
    चिंता शरीर की नहीं, आत्मा के अनुभव की करनी चाहिए।
  2. मृत्यु से डरना अज्ञानता है।
    जैसे युवावस्था से बुढ़ापा आता है, वैसे ही देहांत से नया जन्म होता है।
  3. ज्ञानी व्यक्ति परिवर्तन को समझकर स्थितप्रज्ञ रहता है।
  4. मोह और दुख — शरीर और पहचान के साथ जुड़े हैं,
    आत्मज्ञान से ही इनसे मुक्ति संभव है।

चिंतन के प्रश्न:

क्या मैं खुद को केवल देह मानता हूँ?
क्या मृत्यु का विचार मुझे व्याकुल करता है?
क्या मैंने कभी आत्मा के निरंतर अस्तित्व पर ध्यान किया है?
क्या मैं दूसरों को भी आत्मा मानकर सम्मान देता हूँ?

निष्कर्ष:

यह श्लोक आत्मा की नित्य यात्रा को अत्यंत सरल उदाहरण से समझाता है।
बचपन से बुढ़ापे तक देह बदलती है — इसी तरह आत्मा देहांतर भी करती है।
इसलिए ज्ञानी व्यक्ति मृत्यु या परिवर्तन से विचलित नहीं होता

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