मूल श्लोक: 23
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
शब्दार्थ (शब्दों का अर्थ):
नैनं — इसे (आत्मा को) नहीं
छिन्दन्ति — काटते, विभाजित करते
शस्त्राणि — शस्त्र (हथियार)
नैनं — इसे नहीं
दहति — जलाता है
पावकः — अग्नि
न — नहीं
चैतं — इसे
क्लेदयन्ति — भिगोते
आपः — जल, पानी
न — नहीं
शोषयति — सुखाता है, सूखाता है
मारुतः — वायु, हवा
किसी भी शस्त्र द्वारा आत्मा के टुकड़े नहीं किए जा सकते, न ही अग्नि आत्मा को जला सकती है, न ही जल द्वारा उसे गीला किया जा सकता है और न ही वायु इसे सुखा सकती है।

विस्तृत भावार्थ:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा की अमरता और अटूटता का वर्णन करते हैं। शारीरिक तत्वों और प्राकृतिक शक्तियों का प्रभाव शरीर पर पड़ता है, लेकिन आत्मा पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता।
- शस्त्र — शारीरिक चोट या बंधन आत्मा को छेद या नुकसान नहीं पहुंचा सकते।
- अग्नि — शरीर जल सकता है, पर आत्मा जलती नहीं।
- जल — शरीर भीग सकता है, पर आत्मा भीगती नहीं।
- हवा — शरीर सूख सकता है, पर आत्मा सूखती नहीं।
आत्मा अपार और अविनाशी है, जो न तो किसी शस्त्र से क्षतिग्रस्त होती है, न प्राकृतिक तत्वों से प्रभावित होती है।
दर्शनिक अंतर्दृष्टि:
तत्व | अर्थ |
---|---|
शस्त्राणि छिन्दन्ति नैनं | कोई हथियार आत्मा को नहीं काट सकता |
पावकः न दहति | अग्नि आत्मा को नहीं जला सकती |
आपः न क्लेदयन्ति | पानी आत्मा को नहीं भिगो सकता |
मारुतः न शोषयति | हवा आत्मा को नहीं सुखा सकती |
प्रतीकात्मक अर्थ:
- शस्त्र, अग्नि, जल, वायु = जीवन की कठिनाइयाँ, चुनौतियाँ, और शारीरिक प्रभाव
- आत्मा = अपरिवर्तनीय, अमर, और सर्वव्यापी तत्व
जीवन उपयोगिता:
- आत्मा की अविनाशिता को समझकर जीवन की परेशानियों और भय से ऊपर उठें।
- शारीरिक और मानसिक आघातों को आत्मा पर प्रभावी न मानकर आत्मिक स्थिरता बनाए रखें।
- जीवन के उतार-चढ़ाव को सहजता से स्वीकार करें क्योंकि आत्मा न तो क्षतिग्रस्त होती है, न प्रभावित।
आत्मचिंतन के प्रश्न:
क्या मैं आत्मा की अविनाशिता को गहराई से समझ पाया हूँ?
क्या मैं जीवन की चुनौतियों में आत्मा की शाश्वत प्रकृति से प्रेरणा ले सकता हूँ?
क्या मैं अपने अंदर की स्थिरता और शांति को पहचान पाता हूँ?
निष्कर्ष:
यह श्लोक आत्मा की अमरता, अपरिवर्तनीयता और अविनाशिता को संक्षेप में प्रस्तुत करता है।
यह हमें सिखाता है कि भले ही शरीर को शस्त्र, अग्नि, जल या वायु प्रभावित करें, आत्मा पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
इस ज्ञान से मनुष्य जीवन की भय-और दुखमुक्त यात्रा कर सकता है।