मूल श्लोक:
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥13॥
शब्दार्थ:
- ततः — इसके बाद, उस क्षण के पश्चात
- शङ्खाः — शंख
- भेर्यः — नगाड़े
- पणवानक — छोटे-बड़े ढोल और युद्ध में प्रयुक्त मृदंग
- गोमुखाः — एक प्रकार का तुरही जैसा वाद्य, जिसे ‘गोमुख’ कहा गया है
- सहसा एव — एकाएक, तुरंत
- अभ्यहन्यन्त — बजाए जाने लगे, ध्वनित किए गए
- स शब्दः — वह ध्वनि
- तुमुलः — अत्यंत प्रचंड, गूँजनेवाली
- अभवत् — हो गई, फैल गई
इसके पश्चात् शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा मृदंग अचानक एक साथ बजने लगे। उनका समवेत स्वर अत्यन्त भयंकर था।

भावार्थ:
उस क्षण के बाद युद्धभूमि में शंख, नगाड़े, मृदंग, गोमुख जैसे विभिन्न युद्ध वाद्य एक साथ अचानक बज उठे। यह ध्वनि इतनी तीव्र और प्रचंड थी कि पूरी धरती गूंज उठी और वातावरण में जबरदस्त उत्साह और तनाव भर गया।
विस्तृत भावार्थ:
1. युद्ध का प्रारंभिक वातावरण:
भीष्म पितामह द्वारा शंख बजाए जाने के तुरंत बाद, पूरी कौरव सेना में वाद्य-यंत्रों का प्रचंड नाद गूँजने लगता है। यह युद्ध का उद्घोष है, एक मानसिक और भावनात्मक तैयारी का संकेत।
2. संगठित ध्वनि का प्रभाव:
‘सहसैव’ — अचानक एक साथ सब कुछ बज उठना — यह दर्शाता है कि युद्ध की तैयारी कितनी संगठित थी। किसी सेनापति के आदेश या संकेत मात्र से सारी सेना अपनी जगह तैयार हो जाती है।
3. वाद्यों का प्रतीकात्मक महत्व:
- शंख — चेतना और आरंभ का संकेत
- भेरी / पणव — जोश और उग्रता
- गोमुख — गंभीरता और भय पैदा करनेवाली ध्वनि
इन वाद्यों की एक साथ गूंज युद्ध के माहौल को जीवंत और विस्फोटक बना देती है।
4. ‘तुमुल’ शब्द का संकेत:
‘तुमुल’ शब्द से यह स्पष्ट होता है कि यह कोई साधारण ध्वनि नहीं थी, बल्कि इतना प्रचंड, गूंजता हुआ, कानों को चीरता हुआ नाद था कि वह दुश्मन की चेतना को हिला दे।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
ध्वनि की शक्ति और मनोबल पर प्रभाव:
ध्वनि केवल श्रवण नहीं है — वह चेतना को प्रभावित करती है। प्राचीन काल में युद्ध केवल शस्त्रों से नहीं, ध्वनि और मनोबल से भी लड़े जाते थे। शंखनाद और ढोलों की गर्जना सेनाओं में ऊर्जा का संचार करती थी।
मानसिक स्थिति का नियंत्रण:
इस श्लोक में मानसिक युद्ध का आरंभ दिखाया गया है। जितनी जोरदार यह ध्वनि है, उतना ही उसका प्रभाव सैनिकों की मानसिक स्थिति पर पड़ता है — भय, जोश, और धैर्य तीनों भावों को जाग्रत करती है।
आध्यात्मिक अर्थ:
- शंख, भेरी, पणव आदि — जीवन में जागृति और संघर्ष की शुरुआत के प्रतीक हैं।
- सहसा अभ्यहन्यन्त — जब जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन आता है, तो वह अचानक होता है — और हमे तैयार रहना चाहिए।
- तुमुल शब्द — बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी प्रचंड हों, यदि भीतर स्थिरता हो तो उनसे निपटना संभव है।
निष्कर्ष:
यह श्लोक युद्ध की औपचारिक उद्घोषणा है — जब केवल तलवारें नहीं, आत्मबल और मानसिक दृढ़ता भी जंग के लिए तैयार की जाती हैं। ध्वनि की यह शक्ति केवल एक सैन्य परंपरा नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना को एकत्र करने का माध्यम है।
आपसे प्रश्न:
क्या आप अपने जीवन के युद्धों में अपनी ‘आंतरिक ध्वनि’ सुनते हैं — जो आपको चेतावनी, ऊर्जा और दिशा देती है?
जब जीवन में अचानक कोई ‘सहसैव’ बदलाव आता है, तो क्या आप उतने ही सजग और संगठित होते हैं, जैसे युद्ध की सेना?
आपकी ‘तुमुल ध्वनि’ कौन सी है — जो आपकी आत्मा को ऊर्जा देती है और आपको कर्म के लिए प्रेरित करती है?