मूल श्लोक:
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः॥14॥
शब्दार्थ:
- ततः — इसके पश्चात
- श्वेतैः हयैः युक्ते — श्वेत (सफेद) घोड़ों से युक्त
- महति स्यन्दने — विशाल रथ में
- स्थितौ — स्थित होकर, खड़े होकर
- माधवः — श्रीकृष्ण (मदु वंश में उत्पन्न, लक्ष्मीपति)
- पाण्डवः — अर्जुन (पांडु का पुत्र)
- च एव — और भी
- दिव्यौ — दिव्य, अलौकिक
- शङ्खौ — शंखों को
- प्रदध्मतुः — बजाया दोनों ने
तत्पश्चात् पाण्डवों की सेना के बीच श्वेत अश्वों द्वारा खींचे जाने वाले भव्य रथ पर आसीन माधव और अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये।

भावार्थ:
इसके बाद श्रीकृष्ण और अर्जुन, दोनों सफेद घोड़ों से जुते हुए विशाल रथ में खड़े होकर, अपने दिव्य शंखों को एक साथ बजाते हैं। यह शंखनाद केवल ध्वनि नहीं, बल्कि धर्म और विजय की घोषणा है।
विस्तृत भावार्थ:
1. विशाल रथ और श्वेत अश्व — प्रतीकात्मक दृश्य:
यह दृश्य अत्यंत भव्य है — श्वेत घोड़ों से जुता विशाल रथ जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सारथी के रूप में और अर्जुन योद्धा के रूप में विराजमान हैं। यह रथ धर्मरथ का प्रतीक है, जो केवल बाह्य युद्ध नहीं, आंतरिक द्वंद्व का भी वाहन है।
2. ‘माधव’ और ‘पाण्डव’ — दिव्य युगल:
- माधव (श्रीकृष्ण) — परमात्मा, नीति और योग का प्रतीक
- पाण्डव (अर्जुन) — मानव आत्मा, कर्म और धर्म के बीच संघर्षरत
इन दोनों का साथ एक आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाता है, जहाँ ईश्वर स्वयं मनुष्य के जीवन रथ को सारथी बनकर मार्ग दिखा रहा है।
3. ‘दिव्यौ शङ्खौ’ — साधारण नहीं, अलौकिक ध्वनि:
यह शंख सामान्य नहीं, दिव्य हैं — अर्थात् उनकी ध्वनि आत्मा को झकझोरने वाली, चेतना को जाग्रत करने वाली है। यह शंखनाद मात्र युद्ध प्रारंभ का संकेत नहीं, धर्मयुद्ध की उद्घोषणा है।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
श्वेत अश्व — शुद्धता और गति:
श्वेत घोड़े न केवल सौंदर्य और शक्ति के प्रतीक हैं, बल्कि शुद्धता और सत्य मार्ग पर गतिशीलता के भी संकेत हैं। जब जीवन का रथ पवित्र विचारों से खींचा जाए, तभी वह धर्म के पथ पर चलता है।
मानव और ईश्वर का सहकार्य:
इस दृश्य में मनुष्य (अर्जुन) और ईश्वर (श्रीकृष्ण) साथ खड़े हैं — यह योग का प्रतीक है, जहाँ कर्म और भक्ति मिलते हैं। ईश्वर साथ हो तो हर युद्ध नैतिक और विजयी बनता है।
ध्वनि और दिव्यता:
ध्वनि का महत्व केवल भौतिक नहीं — वह मानसिक और आत्मिक ऊर्जा का संचार करती है। जब दिव्य शंख बजते हैं, तो भीतर की सारी जड़ता टूटती है और आत्मा कर्म के लिए तैयार होती है।
आध्यात्मिक अर्थ:
- श्वेत अश्व — पवित्र संकल्प और विचार
- महान रथ — जीवन का पथ
- माधव — मार्गदर्शक ईश्वर
- पाण्डव — कर्मशील आत्मा
- दिव्य शंख — आत्मबोध की ध्वनि
यह श्लोक बताता है कि जब आत्मा ईश्वर की शरण में आकर पवित्रता और संकल्प से जुड़ती है, तो उसका हर कार्य दिव्यता से भर जाता है।
निष्कर्ष:
यह श्लोक केवल शंख बजाने का दृश्य नहीं है — यह जीवन के धर्मयुद्ध की तैयारी है। जब अर्जुन जैसे साधक के रथ को स्वयं माधव खींचते हैं, और साथ में शंखनाद होता है — तो वह केवल युद्ध नहीं, एक आध्यात्मिक क्रांति की शुरुआत है।
आपसे प्रश्न:
आपके जीवन रथ में सारथी कौन है?
क्या आपके विचार ‘श्वेत अश्वों’ की तरह शुद्ध और गतिशील हैं?
जब आपके भीतर की चेतना अर्जुन की तरह धर्म और संदेह से जूझती है, तो क्या आपके पास माधव जैसा मार्गदर्शक है?