मूल श्लोक:
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥
शब्दार्थ:
- अनन्तविजयम् — युधिष्ठिर का शंख, जिसका अर्थ है अविनाशी विजय
- राजा कुन्तीपुत्रः युधिष्ठिरः — राजा युधिष्ठिर, कुन्ती का पुत्र
- नकुलः — नकुल (माधुरी-पुत्र, सौंदर्य और युद्ध-कला में निपुण)
- सहदेवः — सहदेव (माधुरी-पुत्र, ज्योतिष और नीति-शास्त्र में पारंगत)
- सुघोषम् — नकुल का शंख, जिसका अर्थ है मधुर शब्दवाला
- मणिपुष्पकौ — सहदेव का शंख, मणियों और पुष्पों जैसा सुशोभित
कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नाम का शंख बजाया। नकुल और सहदेव ने क्रमशः सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए।

भावार्थ:
इस श्लोक में युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव द्वारा अपने-अपने शंख बजाने का वर्णन है। युधिष्ठिर ने अनन्तविजय शंख बजाया — जो उनकी सत्यनिष्ठा और धर्म के बल से मिलने वाली विजय का प्रतीक है। नकुल और सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए — जो उनकी वीरता, शील और भव्यता को दर्शाते हैं।
विस्तृत भावार्थ:
1. युधिष्ठिर — धर्म और सत्य की गूंज:
युधिष्ठिर का शंख अनन्तविजय कहलाता है — इसका अर्थ है “सनातन विजय”। यह दिखाता है कि जब युद्ध धर्म और सत्य के आधार पर लड़ा जाता है, तो उसकी विजय भी शाश्वत होती है। युधिष्ठिर की उपस्थिति इस युद्ध को केवल सत्ता का संघर्ष नहीं, बल्कि नीति और धर्म का संग्राम बनाती है।
2. नकुल — शील, सौंदर्य और संतुलन:
नकुल का शंख सुघोष है — मधुर और प्रभावशाली ध्वनि वाला। यह संकेत देता है कि नकुल की वीरता केवल तलवार तक सीमित नहीं, वह अपने व्यवहार, मर्यादा और सुंदरता से भी लोगों को प्रभावित करता है।
3. सहदेव — ज्ञान, आस्था और अंतर्दृष्टि:
सहदेव का शंख मणिपुष्पक है — मणियों और पुष्पों के समान सुंदर। यह दर्शाता है कि उसकी दृष्टि आंतरिक सौंदर्य और ज्ञान की ओर है। वह रणनीति, नीति और ज्योतिष का ज्ञाता था — उसकी भूमिका सेना में केवल युद्ध की नहीं, बुद्धि की भी थी।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
शंखनाद का आध्यात्मिक संकेत:
- अनन्तविजय = वह ध्वनि जो कभी समाप्त नहीं होती — सत्य की उद्घोषणा
- सुघोष = कोमलता और शक्ति का संयोजन
- मणिपुष्पक = सज्जनता, भव्यता और गूढ़ ज्ञान
शंखनाद केवल युद्ध प्रारंभ की घोषणा नहीं है — यह एक आध्यात्मिक जागरण भी है, जहाँ आत्मा, बुद्धि और शरीर तीनों को धर्म के लिए तैयार किया जाता है।
आध्यात्मिक अर्थ:
पात्र | प्रतीक अर्थ |
---|---|
युधिष्ठिर | धर्म और सत्य के प्रतीक राजा |
अनन्तविजय | नीति और नैतिकता की अनंत विजय |
नकुल | सौंदर्य, संतुलन और मर्यादा का प्रतीक |
सहदेव | ज्ञान, अंतर्दृष्टि और नीति का प्रतीक |
निष्कर्ष:
इस श्लोक में केवल शंखनाद नहीं, बल्कि एक धार्मिक और नैतिक उद्घोषणा है —
जहाँ राजा धर्म के बल पर युद्ध करता है,
उसके भाई सौंदर्य और बुद्धि के माध्यम से उसे पूरक बनाते हैं।
यह बताता है कि एक धर्मयुक्त प्रयास में केवल वीरता नहीं, नैतिकता, विवेक और शील भी अनिवार्य हैं।
आपसे प्रश्न:
क्या आप अपने जीवन में अनन्तविजय की तलाश कर रहे हैं या केवल क्षणिक सफलता?
क्या आपके भीतर नकुल जैसा संतुलन और सहदेव जैसा ज्ञान है, जो आपको केवल बाहरी नहीं, आंतरिक विजेता भी बनाता है?