मूल श्लोक:
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्॥19॥
शब्दार्थ:
- सः घोषः — वह घोष (शंखों की ध्वनि)
- धार्तराष्ट्राणाम् — धृतराष्ट्र के पुत्रों (कौरवों) का
- हृदयानि व्यदारयत् — हृदय विदीर्ण कर दिए, भय से कांप उठे
- नभः च — आकाश को भी
- पृथिवीं च एव — पृथ्वी को भी
- तुमुलः — भीषण, प्रचंड
- अभ्यनुनादयन् — प्रतिध्वनित करता हुआ, गुंजायमान करता हुआ
हे धृतराष्ट्र! इन शंखों से उत्पन्न ध्वनि द्वारा आकाश और धरती के बीच हुई गर्जना ने आपके पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण कर दिया।

सरल अनुवाद:
वह शंखनाद इतना प्रचंड था कि
उसने कौरवों के हृदयों को भय से कंपा दिया।
यह ध्वनि आकाश और पृथ्वी दोनों में
भीषण गूंज उत्पन्न कर रही थी।
भावार्थ:
इस श्लोक में पांडवों और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया शंखनाद इतना प्रबल, सामूहिक और शक्तिशाली था कि वह केवल कानों तक सीमित नहीं रहा — वह कौरवों के मन में डर और चिंता की लहर पैदा कर गया। यह केवल भौतिक ध्वनि नहीं, बल्कि आत्मबल और धर्मबल की गूंज थी।
विस्तृत भावार्थ:
- “स घोषः” — वह एकता की ध्वनि:
यह अकेले किसी एक योद्धा का नहीं, पूरे पांडव पक्ष का सम्मिलित घोष था। जब धर्म और उद्देश्य एक साथ गूंजते हैं, तो वह केवल ध्वनि नहीं, एक चेतना बन जाती है। - “हृदयानि व्यदारयत्” — आंतरिक भय का उद्भव:
यह शब्द संकेत करता है कि कौरवों के हृदय विदीर्ण हो उठे — यानी उनके भीतर एक अनजाना भय प्रवेश कर गया। यह शंखनाद केवल बाहरी नहीं था, उसने अंदर तक झकझोर दिया। - “नभः च पृथिवीं च” — समस्त सृष्टि में प्रभाव:
यह ध्वनि इतनी व्यापक थी कि उसने आकाश और पृथ्वी दोनों को प्रतिध्वनित कर दिया। यह संकेत करता है कि यह केवल युद्धभूमि की तैयारी नहीं थी — यह एक ब्रह्मांडीय घोषणा थी, जो धर्म के पक्ष से सम्पूर्ण प्रकृति तक फैल गई।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
यह शंखनाद एक प्रतीक है कि जब धर्म के रक्षक एकत्र होते हैं और संकल्प करते हैं,
तो उसकी ध्वनि न केवल कानों में, बल्कि हृदयों, आत्माओं और प्रकृति तक में गूंजती है।
तत्व | प्रतीक अर्थ |
---|---|
घोष (शंखध्वनि) | धर्मबल, आत्मबल और एकता की घोषणा |
हृदयानि व्यदारयत् | अधर्म के हृदय में प्रवेश करता हुआ भय और असुरक्षा |
नभः च पृथिवीं च | धर्म की शक्ति का सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर प्रभाव |
आध्यात्मिक संकेत:
- यह शंखनाद हमें बताता है कि सत्य और धर्म की गूंज केवल बाहर नहीं,
अंदर की नकारात्मक शक्तियों को भी हिला सकती है। - जब आत्मा, उद्देश्य और शक्ति मिलती है — तो उसकी ध्वनि कंपन बन जाती है,
जो पूरे ब्रह्मांड को चेतना से भर देती है।
निष्कर्ष:
इस श्लोक में एक आंतरिक संघर्ष का प्रारंभ होता है —
जहाँ कौरवों के बाहर तो सेना है, पर भीतर भय है।
और पांडवों के पास शंख है — पर वह केवल ध्वनि नहीं,
धर्म का शस्त्र है जो दिलों में भरोसा और विरोधियों में भय उत्पन्न करता है।
आपसे प्रश्न:
क्या आपकी “ध्वनि” (आवाज़, संकल्प, कर्म) ऐसी है जो सिर्फ सुनाई देती है या भीतर तक असर करती है?
क्या आपने कभी ऐसा सत्य का समर्थन किया है जो दूसरों के भीतर झूठ की नींव हिला दे?