मूल श्लोक:
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति॥25॥
शब्दार्थ:
- भीष्म-द्रोण-प्रमुखतः — भीष्म और द्रोण के सामने
- सर्वेषां च महीक्षिताम् — और सभी पृथ्वी के राजाओं के सामने
- उवाच — कहा
- पार्थ — अर्जुन (कुंती के पुत्र)
- पश्य — देखो
- एतान् — इन
- समवेतान् — एकत्रित हुए
- कुरून् — कौरवों को
- इति — इस प्रकार
भीष्म, द्रोण तथा अन्य सभी राजाओं की उपस्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्रित समस्त कुरुओं को देखो।

भावार्थ:
इस श्लोक में, श्रीकृष्ण अर्जुन को कौरव सेना की ओर देखने के लिए प्रेरित करते हैं, विशेष रूप से भीष्म और द्रोण की उपस्थिति में। यह क्षण अर्जुन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अपने ही परिवार और गुरुओं के विरुद्ध युद्ध करने जा रहा है। श्रीकृष्ण का यह निर्देश अर्जुन को वास्तविकता का सामना करने और अपने कर्तव्यों को समझने में सहायता करता है।
विस्तृत भावार्थ:
- “भीष्म-द्रोण-प्रमुखतः” — प्रमुख व्यक्तियों की उपस्थिति:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन का ध्यान विशेष रूप से भीष्म और द्रोण की ओर आकर्षित किया। भीष्म पितामह कौरवों के प्रधान सेनापति थे, और द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु थे। इन दोनों का युद्ध में सम्मिलित होना अर्जुन के लिए मानसिक संघर्ष का कारण था, क्योंकि वे उनके प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान रखते थे। - “सर्वेषां च महीक्षिताम्” — अन्य राजाओं की उपस्थिति:
इसके अलावा, अनेक अन्य राजा और योद्धा भी कौरव पक्ष में युद्ध के लिए उपस्थित थे। ये सभी राजा अपनी-अपनी सेनाओं के साथ युद्धभूमि में खड़े थे, जो युद्ध की व्यापकता और गंभीरता को दर्शाता है। - “उवाच पार्थ पश्यैतान्” — अर्जुन को संबोधित करना:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को “पार्थ” कहकर संबोधित किया, जो उनकी माता कुंती (पृथा) के नाम से संबंधित है। यह संबोधन अर्जुन को उनके पारिवारिक संबंधों की याद दिलाता है और उनके भीतर के भावनात्मक संघर्ष को उजागर करता है। - “समवेतान् कुरूनिति” — कौरवों को देखना:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वे इन एकत्रित कौरवों को देखें। यह निर्देश अर्जुन को उनके सामने खड़ी वास्तविकता का सामना करने और अपने कर्तव्यों को समझने के लिए प्रेरित करता है।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
यह श्लोक युद्ध के नैतिक और भावनात्मक पहलुओं को उजागर करता है। अर्जुन के लिए यह केवल एक शारीरिक युद्ध नहीं था, बल्कि एक आंतरिक संघर्ष भी था, जिसमें उन्हें अपने परिवार, गुरुओं और मित्रों के विरुद्ध लड़ना था। श्रीकृष्ण का निर्देश अर्जुन को उनके कर्तव्यों की याद दिलाता है और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
तत्व | प्रतीक अर्थ |
---|---|
भीष्म और द्रोण | पारिवारिक और गुरुजन संबंधी बंधन और सम्मान |
अन्य राजा | समाज और राज्य के प्रति कर्तव्य |
कौरवों को देखना | वास्तविकता का सामना करना और कर्तव्य की पहचान |
आध्यात्मिक संकेत:
- कर्तव्य की पहचान: श्रीकृष्ण का निर्देश हमें सिखाता है कि जीवन में हमें अपने कर्तव्यों को पहचानना और उनका पालन करना चाहिए, भले ही परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
- भावनात्मक संतुलन: अर्जुन की स्थिति हमें यह सिखाती है कि भावनात्मक संबंधों के बावजूद, हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए।
निष्कर्ष:
इस श्लोक में, श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके कर्तव्यों की याद दिलाते हैं और उन्हें वास्तविकता का सामना करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह हमें सिखाता है कि जीवन में कठिन परिस्थितियों में भी हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और धर्म के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए।
आपसे प्रश्न:
क्या आप अपने जीवन में ऐसे कठिन निर्णयों का सामना कर चुके हैं जहाँ भावनात्मक संबंध और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाना पड़ा हो?
ऐसे समय में आपने अपने कर्तव्यों का पालन कैसे किया, और क्या आपने धर्म और सत्य के मार्ग को चुना?