Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 1, Sloke 28

English

मूल श्लोक

अर्जुन उवाच।
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥

शब्दार्थ

  • अर्जुन उवाच — अर्जुन ने कहा
  • दृष्ट्वा — देखकर
  • इमं — इस
  • स्वजनम् — अपने लोगों को, सगे संबंधियों को
  • कृष्ण — हे कृष्ण!
  • युयुत्सुम् — युद्ध के लिए तत्पर, युद्ध की इच्छा रखने वाले
  • समुपस्थितम् — सामने उपस्थित हुए
  • सीदन्ति — शिथिल हो रहे हैं, कांप रहे हैं
  • मम — मेरे
  • गात्राणि — अंग, शरीर के अंग
  • मुखम् — मुख
  • परिशुष्यति — सूख रहा है, शुष्क हो रहा है

अर्जुन ने कहा! हे कृष्ण! युद्ध करने की इच्छा से तथा एक दूसरे का वध करने के लिए यहाँ अपने वंशजों को देखकर मेरे शरीर के अंग कांप रहे हैं और मेरा मुंह सूख रहा है।

भावार्थ

यह श्लोक उस मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक संघर्ष का उद्घाटन करता है जिसमें अर्जुन जैसे परम योद्धा भी फंस सकते हैं। अर्जुन जब देखता है कि उसके ही सगे-संबंधी, गुरुजन और मित्र युद्ध के लिए खड़े हैं, तब उसका शरीर कांपने लगता है, और मन अस्थिर हो उठता है। यह वह क्षण है जहाँ मनुष्य अपनी भावना, कर्तव्य और आत्मबल के बीच संघर्ष करता है।

विस्तृत व्याख्या

1. अर्जुन का मानसिक संकट प्रारंभ होता है:

यह श्लोक गीता के “अर्जुन विषाद योग” का मुख्य केंद्र है। यहाँ से अर्जुन की मानसिक दुर्बलता प्रकट होती है, और वह धीरे-धीरे अपने भीतर की पीड़ा को व्यक्त करने लगता है।

2. “स्वजनं” शब्द का महत्व:

अर्जुन यहाँ शत्रु नहीं कहता, वह उन्हें “स्वजन” कहता है — यानी अपने लोग। यही शब्द दर्शाता है कि युद्ध अब केवल बाहरी संघर्ष नहीं रहा, यह एक आंतरिक द्वंद्व बन गया है — जहाँ व्यक्ति अपने प्रियजनों के विरुद्ध खड़ा है।

3. शारीरिक प्रतिक्रियाएं मानसिक पीड़ा का प्रतीक:

  • “सीदन्ति मम गात्राणि” — मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं।
  • “मुखं च परिशुष्यति” — मेरा मुख सूख रहा है।

यह दर्शाता है कि अर्जुन की मानसिक अवस्था अब केवल विचार तक सीमित नहीं रही — यह उसके शरीर को भी प्रभावित करने लगी है। यह एक मानवीय और यथार्थ चित्रण है, जब मन गहरे विषाद में होता है।

प्रतीकात्मक अर्थ

तत्वप्रतीक
स्वजनअपने विचार, आदर्श, मोह और अतीत
युद्धभूमिजीवन के निर्णय और संघर्ष
शारीरिक शिथिलताआत्मबल की कमी और मोह
मुख का शुष्क होनासंप्रेषण शक्ति की रुकावट, मानसिक तनाव

दार्शनिक दृष्टिकोण

1. धर्म का द्वंद्व:

अर्जुन का यह भाव यह संकेत देता है कि धर्म का पालन केवल बाह्य कर्तव्यों से नहीं होता, बल्कि आत्मिक विवेक से होता है। जब व्यक्ति का धर्म (कर्तव्य) उसके मोह (संबंधों) से टकराता है, तब निर्णय कठिन हो जाता है।

2. युद्ध: एक बाह्य और आंतरिक प्रक्रिया:

इस श्लोक में युद्ध केवल धरती पर हो रहा संघर्ष नहीं, बल्कि मनुष्य के अंतर्मन में चल रही हलचल भी है। अर्जुन उस युद्ध को पहले अपने भीतर लड़ रहा है, जिसे हर जागरूक आत्मा को लड़ना पड़ता है।

मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

1. चिंता और मानसिक आघात के लक्षण:

  • अंगों का कांपना
  • मुख का सूखना

ये दोनों लक्षण दर्शाते हैं कि अर्जुन अत्यधिक मानसिक तनाव में है। यह दिखाता है कि गीता केवल आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं है, यह मनोवैज्ञानिक गहराई भी लिए हुए है।

2. आत्म-संदेह की शुरुआत:

अर्जुन अब सोचने लगता है: क्या यह युद्ध उचित है? क्या इसकी कीमत मेरे अपनों का जीवन है?
यह वह मोड़ है जहाँ आत्मविश्वास विवेक और करुणा से टकराता है।

आध्यात्मिक संदर्भ

यह श्लोक एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सच्चाई को सामने लाता है — मोह और ममता ही आत्म-ज्ञान की राह में सबसे बड़े बाधक हैं।
जब मनुष्य अपने “स्वजनों” के मोह में फँस जाता है, तब वह अपने आत्मिक कर्तव्यों को भूल जाता है।

श्रीकृष्ण इसी मोड़ पर अर्जुन को आत्मा, धर्म और कर्म की गहराई सिखाने वाले हैं।

नैतिक शिक्षा

  • जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हमें कठिन निर्णय लेने होते हैं।
  • कभी-कभी कर्तव्य भावनाओं से टकराता है — और यही सबसे बड़ी परीक्षा होती है।
  • मानसिक शक्ति केवल बाह्य बल से नहीं, बल्कि आत्मा की स्पष्टता से आती है।

निष्कर्ष

यह श्लोक केवल अर्जुन की एक व्यक्तिगत प्रतिक्रिया नहीं है, यह हर उस व्यक्ति की कहानी है जिसने कभी अपने कर्तव्य, भावनाओं और आत्मबल के बीच टकराव अनुभव किया है।
यह दिखाता है कि कोई भी — चाहे वह महान योद्धा ही क्यों न हो — भावनाओं का शिकार हो सकता है। लेकिन यही द्वंद्व आत्म-ज्ञान की यात्रा का पहला कदम बनता है।

आपसे आत्ममंथन के प्रश्न

क्या आपने कभी अपने “स्वजनों” के कारण कोई कठिन निर्णय टाल दिया है?
जब आपका कर्तव्य आपकी भावनाओं से टकराए, तो आप किसे प्राथमिकता देते हैं?
क्या आपके भीतर अर्जुन की तरह कोई आंतरिक युद्ध चल रहा है?
क्या आप किसी निर्णय को लेकर शारीरिक रूप से भी असहज अनुभव करते हैं?

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *