Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 1, Sloke 9

English

मूल श्लोक:

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥9॥

शब्दार्थ:

  • अन्ये च — और भी अनेक
  • बहवः — बहुत से
  • शूराः — वीर योद्धा
  • मदर्थे — मेरे लिए, मेरी खातिर
  • त्यक्त-जीविताः — जिन्होंने प्राणों को त्याग रखा है (अर्थात् जिन्होंने जीवन की परवाह किए बिना युद्ध का निश्चय कर लिया है)
  • नाना-शस्त्र-प्रहरणाः — विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित
  • सर्वे — सभी
  • युद्ध-विशारदाः — युद्ध में निपुण, कुशल योद्धा

यहाँ हमारे पक्ष में अन्य अनेक महायोद्धा ऐसे भी हैं जो मेरे लिए अपने जीवन का बलिदान करने के लिए तत्पर हैं। वे युद्ध कौशल में पूर्णतया निपुण और विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं।

भावार्थ:

दुर्योधन कहता है —
“और भी अनेक वीर योद्धा हैं जो मेरी खातिर अपने प्राणों को त्यागने को तैयार हैं। वे सभी विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध की कला में पूर्ण पारंगत हैं।”

विस्तृत भावार्थ:

1. दुर्योधन की आत्मविश्वासपूर्ण घोषणा:

दुर्योधन इस श्लोक में अपने पक्ष की शक्ति को दर्शाता है — न केवल बड़े नामों वाले सेनानायक हैं, बल्कि और भी कई शूरवीर हैं जो निःस्वार्थ भाव से उसके लिए जान देने को तैयार हैं। यह उसकी आत्मविश्वासपूर्ण मानसिकता और अपने अनुयायियों पर भरोसे को दर्शाता है।

2. ‘मदर्थे त्यक्तजीविताः’ — अंध निष्ठा या समर्पण?

ये शब्द दो प्रकार से देखे जा सकते हैं:

  • सकारात्मक रूप में: ये योद्धा इतने समर्पित हैं कि अपने राजा के लिए प्राण भी देने को तैयार हैं — यह निष्ठा और समर्पण का प्रतीक है।
  • नकारात्मक रूप में: यह भी संकेत देता है कि दुर्योधन की सत्ता ऐसी है जो लोगों को अंध रूप से उसके लिए मर मिटने को प्रेरित करती है — भले ही उद्देश्य धर्म-संगत न हो।

3. ‘नानाशस्त्रप्रहरणाः’ — युद्ध की बहुआयामी तैयारी:

दुर्योधन की सेना केवल बलशाली नहीं, तकनीकी दृष्टि से भी सक्षम है — विविध प्रकार के शस्त्रों का ज्ञान रखने वाले योद्धा यह दर्शाते हैं कि उनकी तैयारी केवल संख्याबल तक सीमित नहीं है।

4. ‘युद्धविशारदाः’ — अनुभवी और रणनीतिक योद्धा:

हर योद्धा युद्धकला में निपुण है — यह वाक्य किसी भी विरोधी के लिए चेतावनी है कि कौरव पक्ष में अनुभव, कौशल और सामर्थ्य की कोई कमी नहीं।

दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:

समर्पण बनाम विवेक:

“त्यक्तजीविताः” शब्द गहरे प्रश्न खड़े करता है —

  • क्या केवल समर्पण ही पर्याप्त है, यदि वह अधर्म के लिए हो?
  • जब कोई नेता कहे कि “मेरे लिए ये सब जान देने को तैयार हैं”, तो क्या वह गर्व का विषय है या चिंतन का?

नेतृत्व की परीक्षा:

यह श्लोक दिखाता है कि एक सच्चे नेतृत्व की पहचान केवल उसकी शक्ति से नहीं, बल्कि उस पर मर मिटने वालों की निष्ठा और उद्देश्य की शुद्धता से होती है।

आध्यात्मिक अर्थ:

  • अन्ये च बहवः शूराः — हमारे भीतर के अनेक गुण जो कर्तव्य के लिए तत्पर हैं
  • मदर्थे त्यक्तजीविताः — जब आत्मा का उद्देश्य स्पष्ट हो, तो अहंकार, भय, और संदेह जैसे “प्राण” स्वतः त्याग दिए जाते हैं
  • नानाशस्त्रप्रहरणाः — विवेक, धैर्य, सहनशीलता, कर्मशीलता जैसे आंतरिक शस्त्र
  • युद्धविशारदाः — वह चेतन गुण जो जीवन-संग्राम में निपुण हैं

यह श्लोक बताता है कि जीवन में जब उद्देश्य स्पष्ट हो, तो हमारे भीतर की सभी शक्तियाँ उसके लिए समर्पित होकर युद्ध में पारंगत हो जाती हैं।

निष्कर्ष:

यह श्लोक केवल वीरों की गिनती नहीं करता, बल्कि यह बताता है कि एक राजा (या जीवन में एक व्यक्ति) जब अपनी विचारधारा के प्रति दृढ़ होता है, तो अनेक शक्तियाँ उसके पीछे खड़ी हो जाती हैं — चाहे वे सचेत हों या अंध-समर्पित।

आपसे प्रश्न:

क्या आपके जीवन में ऐसे गुण, विचार, या लोग हैं जो आपके उद्देश्यों के लिए त्याग करने को तैयार हैं?
क्या आप स्वयं किसी के लिए “त्यक्तजीवित” हो सकते हैं — और अगर हाँ, तो क्या आपने सोचा है कि वह किसके लिए और क्यों?

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