Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 2, Sloke 10

English

मूल श्लोक – 10

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः॥

शब्दार्थ:

  • तम् — उसे (अर्जुन को)
  • उवाच — कहा
  • हृषीकेशः — श्रीकृष्ण, इन्द्रियों के स्वामी
  • प्रहसन् इव — जैसे मुस्कुराते हुए
  • भारत — हे भारतवंशी (धृतराष्ट्र)
  • सेनयोः उभयोः मध्ये — दोनों सेनाओं के बीच
  • विषीदन्तम् — शोक से व्याकुल
  • इदं वचः — यह वचन

 हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! तत्पश्चात् दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य शोककुल अर्जुन से कृष्ण ने हँसते हुए ये वचन कहे।

विस्तृत भावार्थ:

“तम् उवाच हृषीकेशः” — गुरु का आरंभ:

  • अर्जुन अब मौन हो चुका है, शिष्यत्व की स्थिति में आ गया है।
  • अब श्रीकृष्ण अपने पूर्ण गुरु-स्वरूप में प्रकट होते हैं।
  • यह गीता का वास्तविक उपदेश प्रारंभ होने का क्षण है।

“प्रहसन् इव” — मुस्कान में गहन करुणा:

  • यहाँ “इव” (जैसे) महत्वपूर्ण है —
    श्रीकृष्ण वास्तव में हँस नहीं रहे,
    बल्कि एक करुणामयी मुस्कान से अर्जुन को देख रहे हैं।
  • यह मुस्कान व्यंग्य नहीं,
    बल्कि सत्यदर्शी की करुणा और आश्वासन की अभिव्यक्ति है।

“सेनयोः उभयोः मध्ये” — द्वंद्व के केंद्र में ज्ञान:

  • श्रीकृष्ण अर्जुन को वहीं उपदेश देते हैं
    जहाँ रजोगुण और तमोगुण की चरम अभिव्यक्ति हो रही है — युद्धभूमि।
  • यह संकेत करता है कि असली ज्ञान शांति में नहीं, संघर्ष के बीच उत्पन्न होता है।

“विषीदन्तम्” — अर्जुन की गहराती उदासी:

  • अर्जुन अब केवल भ्रमित नहीं,
    बल्कि भीतर तक पीड़ा में डूबा हुआ है।
  • यह शोक ही उसकी जिज्ञासा को जन्म देता है,
    और उसी क्षण ज्ञान का अधिकार आरंभ होता है।

दार्शनिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

1. गुरु तभी बोलता है, जब शिष्य मौन होता है:

  • श्रीकृष्ण अर्जुन को तभी उपदेश देना शुरू करते हैं
    जब वह अपने तर्कों से थककर समर्पण में आता है।

2. मुस्कान में सत्य की शक्ति:

  • श्रीकृष्ण का “प्रहसन् इव” भाव बताता है —
    “मुझे तेरा शोक ज्ञात है, पर मैं जानता हूँ कि इसका उत्तर भीतर है।”

3. जीवन का युद्ध ही आध्यात्मिक शिक्षा का मंच है:

  • गीता केवल मंदिर में नहीं बोली जाती —
    वह रणभूमि में, कर्म के केंद्र में, विवेक के युद्ध में प्रकट होती है।

प्रतीकात्मक दृष्टिकोण:

तत्त्वप्रतीकात्मक अर्थ
हृषीकेशपरमगुरु, चैतन्य स्वरूप, ब्रह्म के प्रतिनिधि
प्रहसन्निवदिव्य करुणा, आध्यात्मिक आश्वासन
सेनयोर मध्येजीवन के द्वंद्व, संघर्षों का केंद्र
विषीदन्तम् अर्जुनमोहग्रस्त जीवात्मा जो सत्य के लिए तैयार हो रहा है
इदं वचःआत्मा का सत्य, जो गुरु के माध्यम से प्रकट होने वाला है

जीवन के लिए शिक्षाएँ:

  1. ज्ञान तब ही आता है जब अहंकार मौन होता है।
  2. गुरु कभी उपदेश नहीं देता जब तक शिष्य पूरी तरह नहीं सुनने को तैयार होता।
  3. संघर्ष या युद्ध के बीच भी आध्यात्मिक जागरण संभव है
    यह केवल वनवासी साधना नहीं है।
  4. श्रीकृष्ण की मुस्कान हमें सिखाती है —
    “भय मत करो, अज्ञान का अंधकार अब मिटने को है।”

चिंतन के प्रश्न:

क्या मेरे जीवन में कोई हृषीकेश है, जो मेरी उलझनों को मुस्कान से देखता है?
क्या मैं मौन होकर शिष्य बनने को तैयार हूँ?
क्या मैं युद्ध के बीच में भी ज्ञान और शांति के लिए ग्रहणशील हूँ?
क्या मैं उस “इदं वचः” को सुन पा रहा हूँ जो मेरे भीतर से प्रकट होना चाहता है?

निष्कर्ष:

यह श्लोक गीता के ज्ञानप्रवाह का प्रस्थान बिंदु है।
यह शिष्य के मौन और गुरु की मुस्कान का दिव्य मिलन है।
अब श्रीकृष्ण केवल रथ के सारथी नहीं,
जीवन के सारथी बनकर ज्ञान का चक्र चलाने को तैयार हैं।

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