Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 2, Sloke 18

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मूल श्लोक: 18

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत॥

शब्दार्थ (शब्दों का अर्थ):

  • अन्तवन्तः — जिनका अंत होता है
  • इमे — ये (देह)
  • देहाः — शरीर
  • नित्यस्य — नित्य (शाश्वत)
  • उक्ताः — कहा गया है
  • शरीरिणः — embodied being, आत्मा (जो शरीर में स्थित है)
  • अनाशिनः — नाशरहित
  • अप्रमेयस्य — जिसे मापा नहीं जा सकता, जिसकी सीमा नहीं
  • तस्मात् — इसलिए
  • युध्यस्व — युद्ध कर
  • भारत — हे भारतवंशी अर्जुन

केवल भौतिक शरीर ही नश्वर है और शरीर में व्याप्त आत्मा अविनाशी, अपरिमेय तथा शाश्वत है। अतः हे भरतवंशी! युद्ध करो।

विस्तृत भावार्थ:

1. शरीर और आत्मा का भेद:

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि शरीर (देह) का अंत निश्चित है, चाहे वह किसी भी प्रकार का हो — बलवान, सुंदर, वृद्ध, युवा — सबका अंत होगा।
लेकिन जो उस शरीर में विद्यमान है, अर्थात् आत्मा, वह नित्य (शाश्वत), अनाशिन (अविनाशी) और अप्रमेय (जिसे इंद्रियों या बुद्धि से मापा नहीं जा सकता) है।

2. युद्ध का औचित्य:

क्योंकि आत्मा मरती नहीं है और शरीर का अंत होना निश्चित है, इसलिए अर्जुन को अपने धर्म (क्षत्रिय धर्म) का पालन करते हुए युद्ध करना चाहिए।
इस सत्य को जानकर किसी के शरीर की मृत्यु पर शोक करना या मोह में पड़ना उचित नहीं है।

दर्शनिक अंतर्दृष्टि:

तत्वअर्थ
अन्तवन्त देहसब भौतिक शरीर समय के साथ नष्ट होते हैं
नित्य आत्माजो आत्मा शरीर में रहती है, वह शाश्वत है
अप्रमेयताआत्मा को इंद्रियों, मस्तिष्क या विज्ञान से पूरी तरह नहीं समझा जा सकता
युद्धयहाँ प्रतीकात्मक रूप से कर्तव्य या जीवन संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है

प्रतीकात्मक अर्थ:

  • शरीर = नश्वरता
  • आत्मा = अमरता
  • युद्ध = जीवन में धर्म का पालन, कर्तव्य की सिद्धि

जब व्यक्ति केवल शरीर के स्तर पर सोचता है, तो वह डर, मोह, और शोक में फँसता है।
जब आत्मा की दृष्टि आती है, तब धैर्य, विवेक और कर्तव्य पालन सहज हो जाता है।

जीवन उपयोगिता:

  • अपने शरीर की मृत्यु से भयभीत न हों — आत्मा अजर और अमर है।
  • कर्तव्य से पीछे हटना उचित नहीं, क्योंकि मृत्यु सत्य है और आत्मा अक्षम्य।
  • यह श्लोक मानसिक स्थिरता, निर्भयता और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है।

आत्मचिंतन के प्रश्न:

क्या मैं अपने जीवन को केवल शरीर के स्तर पर देख रहा हूँ?
क्या मेरे निर्णय आत्मा की शाश्वतता के ज्ञान से प्रभावित हैं?
क्या मैं अपने कर्तव्य को आत्मा की दृष्टि से निभा पा रहा हूँ?

    निष्कर्ष:

    यह श्लोक हमें जीवन और मृत्यु के गूढ़ रहस्य को समझाता है।
    शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है।
    इसलिए, जीवन में धर्म और कर्तव्य का पालन करते हुए निडर होकर आगे बढ़ना ही श्रेष्ठ मार्ग है।

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