मूल श्लोक: 24
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥
शब्दार्थ (शब्दों का अर्थ):
- अच्छेद्यः — जिसे काटा नहीं जा सकता
- अयम् — यह (आत्मा)
- अदाह्यः — जिसे जलाया नहीं जा सकता
- अक्लेद्यः — जिसे भिगोया नहीं जा सकता
- अशोष्यः — जिसे सुखाया नहीं जा सकता
- नित्यः — शाश्वत, सदा रहनेवाला
- सर्वगतः — सर्वव्यापक, सब जगह स्थित
- स्थाणुः — स्थिर, अचल
- अचलः — हिलने-डुलने से रहित
- सनातनः — शाश्वत, आदि से अंत तक रहनेवाला
आत्मा अखंडित और अज्वलनशील है, इसे न तो गीला किया जा सकता है और न ही सुखाया जा सकता है। यह आत्मा शाश्वत, सर्वव्यापी, अपरिर्वतनीय, अचल और अनादि है।

विस्तृत भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में आत्मा के और भी गहरे गुणों का उल्लेख करते हैं। आत्मा:
- अविनाशी है — इसे कोई हथियार काट नहीं सकता
- अदग्ध है — अग्नि इसे जला नहीं सकती
- अक्लेद्य है — जल इसे भिगो नहीं सकता
- अशोष्य है — वायु इसे सुखा नहीं सकती
- नित्य है — यह हमेशा रहने वाली है, समय से परे
- सर्वगत है — आत्मा प्रत्येक जीव के अंदर विद्यमान है
- स्थाणु है — आत्मा अचल और स्थिर रहती है
- अचल है — इसे हिलाया-डुलाया नहीं जा सकता
- सनातन है — यह सृष्टि के प्रारंभ से ही विद्यमान है और सदा रहेगी
इस प्रकार आत्मा सम्पूर्ण रूप से अजर, अमर, अपरिवर्तनीय और सदा एक समान रहनेवाली सत्ता है।
दर्शनिक अंतर्दृष्टि:
तत्व | अर्थ |
---|---|
अच्छेद्य | कोई भी अस्त्र आत्मा को काट नहीं सकता |
अदाह्य | अग्नि आत्मा को भस्म नहीं कर सकती |
अक्लेद्य | जल आत्मा को गीला नहीं कर सकता |
अशोष्य | वायु आत्मा को नहीं सुखा सकती |
नित्य | आत्मा समय से परे, शाश्वत है |
सर्वगत | आत्मा सभी में समाहित है |
स्थाणु | आत्मा अचल, स्थिर और अविचल है |
अचल | आत्मा की स्थिति स्थायी है |
सनातन | आत्मा आदि और अंत से रहित है |
प्रतीकात्मक अर्थ:
- शस्त्र, अग्नि, जल, वायु = जीवन की कठिनाइयाँ
- आत्मा = हमारी मूल, शाश्वत, दिव्य सत्ता
जीवन उपयोगिता:
- हमें आत्मा की अमरता का बोध कर अपने दुखों और भय से ऊपर उठना चाहिए।
- आत्मा की स्थायित्व और अचलता को पहचानकर हमें जीवन में मानसिक स्थिरता लानी चाहिए।
- सांसारिक बदलाव आत्मा को प्रभावित नहीं करते — इस ज्ञान से आत्मविश्वास और निडरता आती है।
आत्मचिंतन के प्रश्न:
क्या मैं अपने अस्तित्व को केवल शरीर तक सीमित मानता हूँ?
क्या मैं आत्मा की शाश्वतता को पहचानकर संसार के दुखों से ऊपर उठने का प्रयास करता हूँ?
क्या मेरी दृष्टि स्थायी और सनातन सत्य की ओर केंद्रित है?
निष्कर्ष:
यह श्लोक आत्मा के दिव्य गुणों का गहन उद्घाटन करता है।
यह हमें बताता है कि आत्मा पर कोई भौतिक या प्राकृतिक तत्व प्रभाव नहीं डाल सकता।
जो आत्मा को पहचानता है, वह संसार की भय, मोह और शोक की सीमाओं से ऊपर उठ जाता है।
आत्मा की नित्य, अचल, सनातन और सर्वव्यापक स्वरूप को जानना ही आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी है।