मूल श्लोक: 25
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥
शब्दार्थ (शब्दों का अर्थ):
- अव्यक्तः — जो इन्द्रियों से ग्रहण नहीं किया जा सकता, जो प्रकट नहीं होता
- अयम् — यह (आत्मा)
- अचिन्त्यः — जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती, जो विचार की सीमा से परे है
- अविकार्यः — जो कभी भी बदलता नहीं है, जिसमें कोई विकार नहीं आता
- उच्यते — कहा गया है
- तस्मात् — इसलिए
- एवम् — इस प्रकार
- विदित्वा — जानकर, समझकर
- एनम् — इस (आत्मा) को
- न अनुशोचितुम् अर्हसि — शोक करने योग्य नहीं है, शोक नहीं करना चाहिए
इस आत्मा को अदृश्य, अचिंतनीय और अपरिवर्तनशील कहा गया है। यह जानकर हमें शरीर के लिए शोक प्रकट नहीं करना चाहिए।

विस्तृत भावार्थ:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा के तीन और गुण बताते हैं:
- अव्यक्त (Invisible): आत्मा को हम अपनी आँखों, कानों, या किसी भी इंद्रिय द्वारा देख या अनुभव नहीं कर सकते। यह इंद्रियातीत है।
- अचिन्त्य (Inconceivable): आत्मा इतनी सूक्ष्म और गूढ़ है कि हमारी बुद्धि उसकी संपूर्णता को नहीं समझ सकती। इसे केवल आध्यात्मिक अनुभव और ज्ञान से जाना जा सकता है।
- अविकार्य (Immutable): आत्मा में कोई बदलाव नहीं होता — न जन्म, न मृत्यु, न बुढ़ापा, न कोई भी अन्य परिवर्तन।
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जब यह आत्मा इंद्रियों से परे, विचार से परे और सदा अपरिवर्तनीय है, तो इस पर शोक करना ज्ञानियों को शोभा नहीं देता।
दर्शनिक अंतर्दृष्टि:
गुण | अर्थ |
---|---|
अव्यक्त | इंद्रियों से अनुभव नहीं किया जा सकता |
अचिन्त्य | कल्पना और तर्क से परे |
अविकार्य | किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता |
नानुशोचितुमर्हसि | आत्मा के विषय में शोक करना उचित नहीं |
यह श्लोक आत्मा की अति-गूढ़, सूक्ष्म और ब्रह्मतुल्य प्रकृति को स्पष्ट करता है।
प्रतीकात्मक अर्थ:
- अव्यक्तता = ईश्वरतुल्य गहराई
- अचिन्त्यता = अध्यात्मिक रहस्य जो केवल अनुभव से जाना जा सकता है
- अविकार्यता = स्थायी स्वरूप, जो परिवर्तन से परे है
- शोक न करना = आत्मज्ञान द्वारा प्राप्त विवेक
जीवन उपयोगिता:
- किसी की मृत्यु या हानि पर शोक करने की बजाय आत्मा के शाश्वत स्वरूप का चिंतन करें।
- जो बदलता नहीं, मरता नहीं, और समझ से परे है — उसके लिए शोक का कोई औचित्य नहीं है।
- आत्मा के इस गूढ़ स्वरूप को जानकर जीवन की अस्थिरता से डरे नहीं।
आत्मचिंतन के प्रश्न:
क्या मैं आत्मा को केवल तर्क और इंद्रियों से समझने का प्रयास कर रहा हूँ?
क्या मेरी शोक की भावना आत्मा की वास्तविकता से अनभिज्ञता का परिणाम है?
क्या मैं परिवर्तनशील शरीर के बजाय अविकारी आत्मा पर ध्यान केंद्रित करता हूँ?
निष्कर्ष:
यह श्लोक आत्मा की वह विशेषता बताता है जिसे कोई भी भौतिक या मानसिक साधन समझ नहीं सकता।
जब आत्मा को ‘अव्यक्त’, ‘अचिन्त्य’ और ‘अविकार्य’ समझ लिया जाए, तो जीवन और मृत्यु की घटनाओं पर शोक का कोई स्थान नहीं रह जाता।
ज्ञान से उत्पन्न यह दृष्टि हमें स्थिरता, निर्भयता और आध्यात्मिक जागरूकता प्रदान करती है।