मूल श्लोक:
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्ख दध्मौ प्रतापवान् ॥12॥
शब्दार्थ:
- तस्य — उस (दुश्मन की सेना के)
- सञ्जनयन् — उत्पन्न करते हुए, बढ़ाते हुए
- हर्षं — उत्साह, उमंग
- कुरु-वृद्धः — कुरु वंश का वृद्ध, यानी भीष्म पितामह
- पितामहः — दादा, यहाँ भीष्म को संबोधित
- सिंहनादं — सिंह के गर्जन जैसे शक्तिशाली उद्घोष
- विनद्योच्चैः — ऊँची आवाज़ से फूँकना
- शङ्ख — युद्ध में बजाया जाने वाला शंख
- दध्मौ — फूँकना, बजाना
- प्रतापवान् — पराक्रमी, वीर
तत्पश्चात् कुरूवंश के वयोवृद्ध परम यशस्वी महायोद्धा भीष्म पितामह ने सिंह-गर्जना जैसी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया जिसे सुनकर दुर्योधन हर्षित हुआ।

भावार्थ:
भीष्म पितामह, जो कुरु वंश के वरिष्ठ और युद्ध के महान योद्धा हैं, अपनी शक्ति और पराक्रम से भरकर दुश्मनों की सेना के मनोबल को तोड़ने के लिए ऊँची आवाज़ में सिंह के गर्जन जैसी तान शंख बजाते हैं। इससे युद्ध के मैदान में उत्साह और जोश उत्पन्न होता है।
विस्तृत भावार्थ:
1. भीष्म का युद्धभूमि में प्रभाव:
भीष्म पितामह का शंख बजाना केवल एक ध्वनि नहीं है, बल्कि यह उनकी शौर्य और नेतृत्व का प्रतीक है। उनका शंख युद्ध के आरंभ और उत्साह का संकेतिक वाणी है जो सैनिकों में जोश भरता है।
2. सिंहनाद जैसा उद्घोष:
‘सिंहनादं’ शब्द से यह स्पष्ट होता है कि उनकी आवाज़ और शंखनाद कितने शक्तिशाली और प्रभावशाली थे। जैसे सिंह के गर्जन से जंगल दहल जाता है, वैसे ही भीष्म का शंखनाद युद्धभूमि में गूँजता था।
3. मनोबल बढ़ाने का आयाम:
इस उद्घोष से युद्ध के साथी उत्साहित होते हैं और शत्रु भयभीत। यह एक रणनीतिक कदम है जिससे सेनाओं के मनोबल को उच्चतम स्तर पर रखा जाता है।
4. पितामह की भूमिका:
भीष्म की यह भूमिका केवल एक योद्धा की नहीं, बल्कि सेनापति की भी है जो अपनी उपस्थिति से ही सेना को मजबूती और आत्मविश्वास प्रदान करता है।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
नेतृत्व और प्रभावशाली उपस्थिति:
भीष्म का ‘सिंहनाद’ दर्शाता है कि एक सच्चा नेता अपनी उपस्थिति से ही अपनी सेना को ऊर्जा दे सकता है। आवाज़ और आत्मविश्वास का प्रभाव लड़ाई के मैदान में अनमोल होता है।
संकेत और प्रतीक:
शंखनाद जैसे प्रतीक युद्ध में निर्णय लेने और सेना को संगठित करने का माध्यम होते हैं। यह न केवल सूचना का स्रोत है, बल्कि उत्साह और सामूहिक शक्ति का स्रोत भी है।
मनोवैज्ञानिक युद्ध:
भीष्म का यह कृत्य शारीरिक लड़ाई से पहले मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा है, जो दुश्मन की हिम्मत तोड़ता और अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाता है।
आध्यात्मिक अर्थ:
- शंखनाद = जीवन के संघर्षों में जागृति और चेतना की आवाज़।
- सिंहनाद = निर्भय और शक्तिशाली आत्मा की गूँज।
- भीष्म पितामह = पराक्रम, अनुभव, और नेतृत्व के आदर्श।
- हर्ष सृजन = कठिनाई में भी उत्साह और धैर्य बनाए रखना।
निष्कर्ष:
यह श्लोक भीष्म के महत्त्वपूर्ण नेतृत्व और उनकी युद्ध की तैयारी का प्रतीक है। शंख की ध्वनि और सिंह के गर्जन जैसी आवाज़ से युद्धभूमि में ऊर्जा का संचार होता है, जो किसी भी संघर्ष में मनोबल बनाए रखने के लिए अनिवार्य है।
आपसे प्रश्न:
जब आपके जीवन में चुनौतियाँ आयें, तो क्या आप भी भीष्म की तरह अपने मनोबल को बुलंद कर, साहस और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते हैं?
क्या आप समझते हैं कि एक नेता की उपस्थिति और आवाज़ ही कभी-कभी पूरी टीम का उत्साह बढ़ा सकती है?
आपकी “सिंहनाद” कैसी है — क्या आपकी आवाज़ में वो शक्ति और जोश है जो दूसरों को प्रेरित कर सके?