मूल श्लोक:
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् पृथक्॥18॥
शब्दार्थ:
- द्रुपदः — राजा द्रुपद (पांचाल नरेश, द्रौपदी के पिता)
- द्रौपदेयाः — द्रौपदी के पुत्र (प्रत्येक पांडव से एक पुत्र)
- सर्वशः — सभी के सभी (संपूर्ण रूप से)
- पृथिवीपते — हे पृथ्वी के स्वामी! (धृतराष्ट्र के लिए संबोधन)
- सौभद्रः — अभिमन्यु (सुभद्रा का पुत्र, अर्जुन का पुत्र)
- महाबाहुः — बलशाली भुजाओं वाला
- शङ्खान् दध्मुः — शंख बजाए
- पृथक् पृथक् — अलग-अलग, भिन्न-भिन्न रूप से
हे पृथ्वी के राजा (धृतराष्ट्र)! राजा द्रुपद, द्रौपदी के सभी पुत्र और महान भुजाओं वाले अभिमन्यु (सौभद्र) — इन सभी ने अलग-अलग (अपने-अपने) शंख बजाए।

सरल अनुवाद:
हे पृथ्वीपति (धृतराष्ट्र)!
राजा द्रुपद, उनके पौत्र द्रौपदी के सभी पुत्र,
और महाबली सौभद्र (अभिमन्यु) ने भी
अलग-अलग अपने शंख बजाए।
भावार्थ:
इस श्लोक में पांडवों की ओर से युद्ध में सम्मिलित होने वाले शेष प्रमुख योद्धाओं के शंखनाद का उल्लेख है। इनमें द्रुपद (पांचालराज), द्रौपदी के पांचों पुत्र, और अभिमन्यु (सुभद्रा और अर्जुन का पुत्र) शामिल हैं। यह शंखनाद इस युद्ध के पूर्ण नैतिक और पारिवारिक समर्थन को दर्शाता है।
विस्तृत भावार्थ:
- द्रुपद — अपमान से युद्ध तक:
राजा द्रुपद, जिनका अपमान द्रोणाचार्य ने किया था, उसी अपमान का बदला लेने के लिए इस युद्ध में पूरी निष्ठा से शामिल हैं। उनका युद्ध में उतरना दिखाता है कि जब धर्म के विरुद्ध अपमान होता है, तो न्याय के लिए एक राजा भी खड़ा होता है। - द्रौपदेय — अगली पीढ़ी की सहभागिता:
द्रौपदी के पांचों पुत्र — प्रतिविन्ध्य (युधिष्ठिर-पुत्र), सुतसोम (भीम-पुत्र), श्रुतकीर्ति (नकुल-पुत्र), शतानिक (सहदेव-पुत्र), और श्रुतसेन (अर्जुन-पुत्र) — यह सभी वीर, अगली पीढ़ी की उपस्थिति दर्शाते हैं। वे केवल वंश नहीं, बल्कि मूल्यों और धर्म के उत्तराधिकारी भी हैं। - सौभद्र (अभिमन्यु) — नवयुवक शक्ति और साहस का प्रतीक:
अभिमन्यु, अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र, एक महान योद्धा था। “महाबाहुः” शब्द उसके शारीरिक और मानसिक बल दोनों को दर्शाता है। उसकी उपस्थिति बताती है कि यह युद्ध केवल पुराने योद्धाओं का नहीं, बल्कि युवा शक्ति की निर्णायक भूमिका का भी संग्राम है।
दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण:
यहाँ जो योद्धा वर्णित हैं, वे केवल वीर नहीं — बल्कि एक नैतिक, पारिवारिक और भावनात्मक श्रृंखला के भाग हैं:
पात्र | प्रतीक अर्थ |
---|---|
द्रुपद | अपमान का प्रतिकार, धर्म के लिए न्यायपूर्ण युद्ध |
द्रौपदेय | नई पीढ़ी, मूल्य-आधारित विरासत |
सौभद्र (अभिमन्यु) | नवयुवक आत्मबल, वीरता और त्याग का प्रतीक |
आध्यात्मिक संकेत:
- द्रुपद — न्याय के लिए खड़ा हुआ पिता
- द्रौपदेय — धर्म के उत्तराधिकारी
- अभिमन्यु — साहस और बलिदान का युगनायक
- यह शंखनाद केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं,
बल्कि यह बताता है कि धर्म-युद्ध में सम्पूर्ण पीढ़ियाँ,
सम्पूर्ण परिवार, सम्पूर्ण संकल्प सम्मिलित होते हैं।
निष्कर्ष:
इस श्लोक में युद्धभूमि केवल योद्धाओं से नहीं,
बल्कि परिवार, परंपरा, और भविष्य की पीढ़ियों से भर गई है।
जहाँ द्रुपद ने प्रतिशोध का संकल्प लिया,
वहीं द्रौपदेयों ने उत्तराधिकारी बनकर उसे आगे बढ़ाया,
और अभिमन्यु ने नवयुवक शक्ति से धर्म की रक्षा का बीड़ा उठाया।
आपसे प्रश्न:
क्या आप अपने जीवन में ऐसे किसी मूल्य के उत्तराधिकारी हैं, जिसे आप अगली पीढ़ी तक ले जाना चाहते हैं?
क्या आपके भीतर अभिमन्यु जैसी साहसिकता है — जो संकटों में भी धर्म के मार्ग पर अडिग रह सके?