Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 2, Sloke 20

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मूल श्लोक: 20

न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

शब्दार्थ (शब्दों का अर्थ):

न जायते — न उत्पन्न होता है
म्रियते वा — और न मरता है
कदाचित् — कभी भी
नायम् — यह आत्मा
भूत्वा — उत्पन्न होकर
भविता वा — पुनः उत्पन्न होगी, ऐसा नहीं है
न भूयः — दोबारा नहीं
अजः — अजन्मा
नित्यः — शाश्वत (हमेशा रहने वाला)
शाश्वतः — अनन्त
अयम् — यह (आत्मा)
पुराणः — अत्यन्त प्राचीन
न हन्यते — न मारी जाती है
हन्यमाने शरीरे — शरीर के मारे जाने पर भी नहीं

आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है। वह कभी उत्पन्न नहीं हुई थी और न भविष्य में उत्पन्न होगी। वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।

विस्तृत भावार्थ:

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा के स्वरूप की गहराई से व्याख्या करते हैं और बताते हैं कि आत्मा:

  1. अजन्मा है — आत्मा का कभी जन्म नहीं होता; वह सदा से है।
  2. अमृत है — मृत्यु आत्मा को छू नहीं सकती।
  3. शाश्वत और पुरातन है — आत्मा का कोई आरंभ या अंत नहीं है। वह समय से परे है।
  4. शरीर से परे है — शरीर नष्ट हो सकता है, लेकिन आत्मा नहीं।

यह श्लोक आत्मा की अमरता और उसकी अविनाशी प्रकृति को रेखांकित करता है। यह जानकर अर्जुन को युद्ध करते समय शोक नहीं करना चाहिए।

दर्शनिक अंतर्दृष्टि:

तत्वअर्थ
न जायते, न म्रियतेआत्मा का जन्म-मरण नहीं होता
अजआत्मा कभी उत्पन्न नहीं हुई
नित्यआत्मा हमेशा रहती है
शाश्वतसमय से परे, अपरिवर्तनीय
पुराणआत्मा आदिकाल से है, समय से परे है
न हन्यते शरीरे हन्यमानेशरीर मरता है, आत्मा नहीं

प्रतीकात्मक अर्थ:

  • आत्मा = नित्य चेतना, ब्रह्म का अंश
  • शरीर = नश्वर आवरण
  • जन्म-मरण = माया की अनुभूति
  • पुराण = वह जो सदा से था, है, और रहेगा

जीवन उपयोगिता:

  • जब हम यह समझ जाते हैं कि आत्मा अमर है, तो मृत्यु का भय समाप्त होता है।
  • आत्मा की यह स्थिति हमें जीवन के हर संघर्ष, कर्तव्य, और मोह से ऊपर उठने की शक्ति देती है।
  • यह श्लोक आध्यात्मिक शांति और निर्भयता प्रदान करता है।
  • इससे आत्मा और शरीर का स्पष्ट भेद समझ में आता है।

आत्मचिंतन के प्रश्न:

क्या मैं अपने आप को केवल शरीर मान रहा हूँ?
क्या मुझे आत्मा की अमरता पर विश्वास है?
क्या मेरे निर्णय आत्मिक ज्ञान से संचालित हैं?

निष्कर्ष:

यह श्लोक आत्मा की नित्य, अविनाशी, और अजन्मा प्रकृति को स्पष्ट करता है।
यह जानना कि आत्मा कभी पैदा नहीं होती और कभी मरती नहीं, हमारे जीवन की सारी व्यर्थ चिंताओं को मिटा सकता है।
इस ज्ञान के साथ अर्जुन जैसे योद्धा भी युद्ध कर सकते हैं — न शोक से ग्रस्त होकर, न मोह से बंधकर, बल्कि धर्मपूर्वक और आत्म-ज्ञान के साथ।
यही गीता का सार है — “शरीर मरता है, आत्मा नहीं।”

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