मूल श्लोक:
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥4॥
शब्दार्थ:
- अत्र — यहाँ
- शूराः — पराक्रमी योद्धा
- महेष्वासाः — महान धनुषधारी
- भीम-अर्जुन-समाः — भीम और अर्जुन के समान (वीरता में)
- युधि — युद्ध में
- युयुधानः — युयुधान (सात्यकि)
- विराटः — विराट (मत्स्य देश के राजा)
- द्रुपदः — द्रुपद (पंचाल देश के राजा)
- महारथः — महान रथी, श्रेष्ठ योद्धा
यहाँ इस सेना में भीम और अर्जुन के समान बलशाली युद्ध करने वाले महारथी युयुधान, विराट और द्रुपद जैसे अनेक शूरवीर धनुर्धर हैं।

भावार्थ (सरल अनुवाद):
दुर्योधन कहता है — “हे आचार्य! इस सेना में अनेक पराक्रमी योद्धा हैं, जो महान धनुषधारी हैं और युद्ध में भीम तथा अर्जुन के समान वीर हैं। इनमें युयुधान, विराट और महारथी द्रुपद जैसे योद्धा भी सम्मिलित हैं।”
विस्तृत भावार्थ और विश्लेषण:
यह श्लोक गीता के पहले अध्याय में दुर्योधन द्वारा बोला गया है। वह द्रोणाचार्य के समक्ष पांडवों की सेना में उपस्थित श्रेष्ठ योद्धाओं का विवरण दे रहा है। यह केवल जानकारी देना नहीं है, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक रणनीति भी है।
1. ‘अत्र शूरा महेष्वासा’ — वीरता का उल्लेख, परन्तु भीतर छिपा भय:
- “यहाँ पराक्रमी और महान धनुषधारी योद्धा हैं” — यह कहकर दुर्योधन वास्तव में यह दिखा रहा है कि वह पांडवों की सेना से भीतर से चिंतित है।
- वह इन योद्धाओं की वीरता को केवल सामान्य प्रशंसा के लिए नहीं कह रहा, बल्कि अपने गुरु को यह जताने के लिए कह रहा है कि यह कोई साधारण सेना नहीं है।
2. ‘भीमार्जुनसमा युधि’ — तुलना से छिपी रणनीति:
- भीम और अर्जुन सबसे शक्तिशाली पांडव माने जाते हैं।
- जब दुर्योधन कहता है कि अन्य योद्धा भी “भीम और अर्जुन के समान” हैं, तो वह यह संकेत दे रहा है कि पांडवों की पूरी सेना घातक है, केवल दो योद्धा नहीं।
- यह तुलना एक ओर उनकी ताकत को स्वीकार करती है, दूसरी ओर द्रोणाचार्य पर दबाव बनाने का प्रयास करती है।
3. ‘युयुधानः’ — सात्यकि का नाम विशेष क्यों?:
- सात्यकि (युयुधान) यादवों के महान योद्धा हैं, और श्रीकृष्ण के प्रिय हैं।
- वे अर्जुन के शिष्य भी हैं, और उनका उल्लेख अर्जुन के समान करने से दुर्योधन उनके महत्व को रेखांकित करता है।
4. ‘विराटश्च’ — पांडवों को शरण देने वाले का नाम लेना एक संकेत:
- विराट वह राजा हैं जिनके राज्य में पांडवों ने अज्ञातवास बिताया था।
- उनका नाम लेना केवल सैन्य शक्ति नहीं, पांडवों की सामाजिक और राजनीतिक स्वीकार्यता को दर्शाता है।
5. ‘द्रुपदश्च महारथः’ — गुरु के शत्रु का नाम!
- द्रुपद वही हैं जिनसे द्रोण की शत्रुता रही है।
- दुर्योधन जान-बूझकर द्रुपद का नाम “महारथ” कहकर लेता है।
- यह द्रोणाचार्य के भीतर पुरानी स्मृतियों को जगाने और क्रोध उत्पन्न करने का प्रयास है।
दर्शनशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:
1. श्लोक का द्वैध स्वरूप — सूचना या उकसावन?:
- सतह पर यह श्लोक केवल योद्धाओं का परिचय देता है।
- लेकिन गहराई में यह एक योजना है — गुरु को उकसाने की, उन्हें युद्ध के लिए भावनात्मक रूप से तैयार करने की।
2. ‘विरोध का सम्मान’ — यह केवल कूटनीति है?:
- दुर्योधन अपने विरोधियों की शक्ति स्वीकार कर रहा है — यह राजनीतिक चातुर्य है।
- युद्ध में विरोधियों को कम करके आँकना मूर्खता होती — वह जानता है कि गुरु को तैयार करने के लिए यह आवश्यक है।
3. ‘गुरु और शिष्य के बीच द्वंद्व’ — फिर द्रुपद और द्रोण:
- द्रुपद को महारथ कहकर दुर्योधन गुरु के अतीत को कुरेदता है।
- संभवतः वह चाहता है कि द्रोणाचार्य व्यक्तिगत बदले की भावना से प्रेरित हों।
आध्यात्मिक संकेत:
- भीम-अर्जुन-समा — जीवन में जब संकट आते हैं, तो अकेले दो या तीन गुणों (शक्ति और बुद्धि) से समाधान नहीं होता, बल्कि उस जैसे अनेक समर्थ सहयोगी चाहिए।
- द्रुपद और द्रोण का द्वंद्व — हमारे भीतर की पुरानी स्मृतियाँ, अपमान, और भावनाएँ कभी-कभी वर्तमान निर्णयों को नियंत्रित करती हैं। क्या हम अपने ‘अतीत के युद्ध’ को आज के निर्णयों से दूर रख सकते हैं?
नैतिक प्रश्न:
- क्या हम अपने विरोधियों की वास्तविक शक्ति को पहचानने का साहस रखते हैं?
- जब सामने शक्तिशाली विपक्ष हो, तो क्या हम सम्मान से उनका विश्लेषण करते हैं, या केवल अपने अहंकार से उन्हें छोटा दिखाते हैं?
- क्या हम अपने अतीत के कटु अनुभवों से प्रेरित होकर सही निर्णय ले पाते हैं?
निष्कर्ष:
यह श्लोक केवल योद्धाओं की सूची नहीं है — यह दुर्योधन की चतुराई, रणनीति, और भीतर छिपे भय का संकेत है।
वह शब्दों के माध्यम से अपने गुरु को युद्ध के लिए तैयार कर रहा है — एक ऐसा युद्ध जिसमें केवल शस्त्र नहीं, मनोबल और पुराने घाव भी भूमिका निभाएंगे।
आपसे प्रश्न:
जब सामने संकट खड़ा हो, और वह संकट आपको आपके ही अतीत की ओर इंगित करता हो —
क्या आप उसमें विवेक से काम लेंगे, या अपनी पुरानी भावनाओं से संचालित हो जाएंगे?