Bhagavad Gita: Hindi, Chapter 8, Sloke 27

मूल श्लोक – 27


नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥

शब्दार्थ

संस्कृत शब्दहिन्दी अर्थ
नैतेये दोनों नहीं (मार्ग)
सृतीमार्ग, गतियाँ
पार्थहे पार्थ! (अर्जुन के लिए संबोधन)
जानन्जानने वाला, ज्ञाता
योगीयोग में स्थित साधक
मुह्यतिभ्रमित होता है, मोहित होता है
कश्चनकोई भी
तस्मात्इसलिए
सर्वेषु कालेषुसभी समयों में, हर स्थिति में
योगयुक्तःयोग में स्थित, मन को संयमित रखने वाला
भवबन जा, रहो
अर्जुनहे अर्जुन!


हे पार्थ! जो योगी इन दोनों मार्गों का रहस्य जानते हैं, वे कभी मोहित नहीं होते इसलिए वे सदैव योग में स्थित रहते हैं।

विस्तृत भावार्थ

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समग्र योग का सार बताते हैं।
उन्होंने पूर्व श्लोकों (23–26) में बताया कि मृत्यु के समय आत्मा दो प्रकार की गतियाँ प्राप्त करती है —
(1) अनावृत्ति मार्ग (शुक्ल मार्ग): जिससे आत्मा पुनर्जन्म नहीं लेती, ब्रह्मलोक या परम गति को प्राप्त करती है।
(2) आवृत्ति मार्ग (कृष्ण मार्ग): जिससे आत्मा पुनः जन्म-मरण के चक्र में लौट आती है।

अब इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो योगी इन दोनों मार्गों को समझ लेता है — कि वे कैसे कार्य करते हैं, उनका फल क्या है, और उनमें कौन-सी गति मोक्ष की ओर ले जाती है — वह कभी मोह में नहीं पड़ता।

ऐसा ज्ञानी योगी यह समझता है कि जीवन-मृत्यु केवल आत्मा के मार्ग हैं, न कि उसका अंत। वह यह भी जानता है कि इन मार्गों से परे भी एक सर्वोच्च स्थिति है — परम पुरुष — जहाँ से कोई लौटता नहीं।

इसलिए भगवान अर्जुन को प्रेरित करते हैं कि वह हर समय योगयुक्त रहे, अर्थात् ध्यान, भक्ति और ईश्वर-स्मरण में स्थित रहे।
क्योंकि जो हर समय ईश्वर में स्थित रहता है, उसके लिए मृत्यु भी केवल एक परिवर्तन है, भय नहीं।

दार्शनिक दृष्टिकोण

यह श्लोक ज्ञानयोग और भक्तियोग का अद्भुत समन्वय है।
भगवान यहाँ यह सिखाते हैं कि सच्चा योगी वही है जो संसार के रहस्यों को जानने के बाद भी उनमें आसक्त नहीं होता।
वह जानता है कि शुक्ल और कृष्ण — दोनों मार्ग ईश्वर की ही व्यवस्था हैं।

नैते सृती पार्थ जानन् योगी मुह्यति कश्चन” —
इसका तात्पर्य यह है कि जो आत्मा की गति को समझ लेता है, वह न तो मृत्यु से भयभीत होता है, न जन्म से आकर्षित।
वह दोनों से ऊपर उठ जाता है, क्योंकि उसका मन ‘योग’ अर्थात् ईश्वर-संयोग में लीन हो जाता है।

ऐसे योगी के लिए न शुभकाल मायने रखता है, न अशुभकाल।
उसकी साधना हर समय चलती रहती है — चाहे दिन हो या रात्रि, जीवन हो या मृत्यु।

प्रतीकात्मक अर्थ

श्लोकांशप्रतीकात्मक अर्थ
नैते सृतीजीवन-मृत्यु के मार्ग, कर्म और ब्रह्म की गति
योगी जानन्जो साधक आत्मा की गति को समझता है
मुह्यति कश्चनवह किसी भी भ्रम में नहीं पड़ता
सर्वेषु कालेषु योगयुक्तःजो हर समय ईश्वर से जुड़ा रहता है, वही मुक्त होता है

इसका अर्थ यह है कि जो योगी ईश्वर को जानकर हर समय उसकी उपस्थिति में रहता है, उसके लिए कोई काल, कोई दिशा या कोई परिस्थिति अशुभ नहीं होती।

आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा

  1. सच्चा योग केवल ध्यान का अभ्यास नहीं, बल्कि स्थायी चेतना है।
    ईश्वर में सतत् स्थिति ही योग की पूर्णता है।
  2. मृत्यु का भय ज्ञान के अभाव से उत्पन्न होता है।
    जो आत्मा की शाश्वतता को जान लेता है, वह मृत्यु से नहीं डरता।
  3. हर समय योगयुक्त रहना ही सच्ची साधना है।
    केवल मंदिर, पूजा या ध्यान के समय नहीं — बल्कि हर कर्म में, हर विचार में ईश्वर का भाव रखना चाहिए।
  4. ज्ञान से मोह मिटता है, भक्ति से हृदय पवित्र होता है।
    और दोनों मिलकर मुक्ति का द्वार खोलते हैं।

आत्मचिंतन के प्रश्न

  1. क्या मैं जीवन के दो मार्गों — भौतिक और आध्यात्मिक — को स्पष्ट रूप से समझता हूँ?
  2. क्या मैं केवल शास्त्र पढ़ता हूँ या उनके ज्ञान को जीवन में उतारता हूँ?
  3. क्या मैं हर समय ईश्वर-स्मरण में स्थित रह पाता हूँ?
  4. क्या मैं मृत्यु को परिवर्तन के रूप में देखता हूँ, भय के रूप में नहीं?
  5. क्या मेरे कर्म, विचार और भावनाएँ योगयुक्त हैं या आसक्तिपूर्ण?

निष्कर्ष

भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में अर्जुन को यह अंतिम संदेश देते हैं कि “योग ही सर्वोच्च साधन है।”
जो योगी मृत्यु और पुनर्जन्म के मार्गों को जानता है, वह किसी भी समय, किसी भी परिस्थिति में भ्रमित नहीं होता।

ऐसा योगी हर समय ईश्वर में लीन रहता है —
वह कर्म करता है, परंतु उससे बंधता नहीं;
वह जीवित रहता है, परंतु मृत्यु से भयभीत नहीं होता।

तस्मात् सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन” —
अर्थात्, हे अर्जुन! हर क्षण, हर विचार और हर कर्म में योगयुक्त रहो,
क्योंकि वही स्थिति मनुष्य को मोह से मुक्त कर परब्रह्म तक पहुँचाती है।

सार:
जो योगी जीवन और मृत्यु दोनों को एक दिव्य यात्रा के रूप में समझता है —
वह भ्रमरहित, भयमुक्त और परम ज्ञान से संपन्न होता है।
उसका हर क्षण साधना बन जाता है, और वही उसे अमरता के मार्ग पर ले जाता है।

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